लखनऊ,रिपब्लिक समाचार,अमित चावला : चिन्मय मिशन लखनऊ के तत्वावधान में आयोजित षड दिवसीय गीता ज्ञान यज्ञ के चतुर्थ दिवस में अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में प्रवचन करते हुए पूज्य स्वामी अभेदानन्द जी, आचार्य, चिन्मय मिशन साउथ अफ्रीका ने कहा कि उपनिषद में ब्रह्म नित्य है, सत है, सर्वव्यापी है, अप्रमेय है एवं कर्त्ता भोक्ता नहीं है। यदि हम परमात्मा से पृथक हो कर कर्ता होंगे तो कष्ट होगा। कर्तापन हमें कठोरता प्रदान करता है। परमात्मा से मिलने वाला कोमल होता है।
गीता मे भगवान कहते हैं हमे जीवन में अपने मान अपमान, यश अपयश, पद प्रतिष्ठा, धन, भवन इत्यादि को बहुत गंभीरता से नहीं’ लेना चाहिए। जो चीज स्वीकार नहीं करनी है उसे स्वीकार करने से हम फंस जाते हैं। जैसे कोई सम्मान दे तो भीतर से तैयार रहे क्यूं कि कल अपमान भी हो सकता है। यदि भीतर से सम रहें तो हर परिस्थिति में सुखी रहेंगे। जीवन में जो हो सकता है वह हो सकता है और कुछ ऐसा भी है जो नहीं हो सकता वह नहीं हो सकता।
इतना विवेक हमें जागृत करना चाहिए। वैसे ही जन्म मृत्यु भी अपरिहार्य हैं उन्हें न रोका जा सकता है न टाला जा सकता है। प्रारब्ध के अधीन है। अतः हर परिस्थिति में सम रहना ही जीवन की कला है। श्रीराम कभी महलों में रहते थे कभी भूमि पर शैय्या बनाकर भी रहना पड़ा। अपरिहार्य था । परंतु दोनों अवस्थाओं में रामजी सम एवं प्रसन्न रहते हैं। अतः किसी को जितना समझा सकते हैं समझाएँ अन्यथा आग्रही न बने।
ज्ञान यज्ञ में ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य आचार्य, लखनऊ, श्रीमती ऊषा गोविंद प्रसाद, श्रीमती नीलम बजाज,श्रीकांत अरोड़ा, श्रीमती स्नेह लवानिया, पंकज अग्रवाल, मदनजी अग्रवाल, रमेश जी ज्वैलर्स, रमेश मेहता, विनीत तिवारी, सुनील नौडियाल, आशीष त्रिपाठी,