नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क : ऑपरेशन सिंदूर से मिले सबक के बाद भारतीय सेना ने अपनी ड्रोन क्षमता को और मजबूत करने का फैसला किया है। इसके तहत सेना करीब 2000 करोड़ रुपये की लागत से 850 कॉमिकेज (लोइटरिंग म्यूनिशन) ड्रोन खरीदने की तैयारी में है।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव अधिग्रहण के एडवांस स्टेज में है और इस महीने के आखिरी सप्ताह में होने वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की उच्चस्तरीय बैठक में इसे मंजूरी मिल सकती है।
सूत्रों ने बताया कि फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया के तहत लागू होने वाले इस प्रस्ताव में स्वदेशी स्त्रोतों से ड्रोन और उनके लांचर शामिल होंगे। इन ड्रोन का इस्तेमाल थलसेना, नौसेना, वायुसेना और विशेष बलों को सशक्त बनाने के लिए किया जाएगा।
30 हजार ड्रोन शामिल किए जाएंगे
भारतीय सेना पहले से ही विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त बड़ी संख्या में लोइटरिंग म्यूनिशन का उपयोग कर रही है और आने वाले समय में करीब 30,000 ड्रोन शामिल करने की योजना पर भी काम चल रहा है।
इसके तहत हर इन्फैंट्री बटालियन में एक ‘अश्नि प्लाटून’ गठित की जाएगी, जो दुश्मन के ठिकानों पर हमले और आतंकवाद-रोधी अभियानों में ड्रोन संचालन की जिम्मेदारी संभालेगा।
नौ में सात आतंकी ठिकाने किए थे तबाह
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने ड्रोन का व्यापक इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के भीतर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में चलाए गए इस अभियान के पहले ही दिन नौ में से सात आतंकी ठिकाने तबाह कर दिए गए थे।
बाद में, आतंकियों का बचाव करने उतरी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भी ड्रोन का प्रभावी इस्तेमाल किया गया, जिससे भारी नुकसान और बड़े पैमाने पर ढांचागत क्षति हुई।
कॉमिकेज ड्रोन के बारे में जानें
कामिकेज ड्रोन को लोइटरिंग म्यूनिशन या सुसाइड ड्रोन भी कहा जाता है। ये ऐसे मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) होते हैं जिन्हें एक बार इस्तेमाल होने वाले मिशन के लिए तैयार किया जाता है। वे लक्ष्य के ऊपर मंडराते हैं, दुश्मन के ठिकानों की पहचान करते हैं, और फिर लक्ष्य से जाकर टकरा जाते हैं। इससे उनमें लगा विस्फोटक पेलोड फट जाता है।
कॉमिकेज का मतलब है तूफान
कॉमिकेज जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है तूफान। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, यह शब्द जापानी आत्मघाती पायलटों का पर्याय बन गया, जो अपने प्लेन दुश्मन के जहाजों से टकरा देते थे। इन पायलटों ने दुश्मन को पलटवार करने का मौका नहीं दिया, और ऐसा करके ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए अपना बलिदान कर देते थे।
