सरकारें सभी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं कर सकतीं-SC

SUPREME-COURT

नई दिल्ली, ब्यूरो : सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधन मानते हुए राज्य द्वारा कब्जा करके या अधिग्रहण करके सार्वजनिक भलाई के लिए वितरित करने के अधिकार पर महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से दिए निर्णय में कहा है कि सभी निजी संपत्तियां समुदाय के भौतिक संसाधनों का हिस्सा नहीं बन सकतीं और सार्वजनिक भलाई के वितरण के लिए राज्य उन्हें अपने अधिकार में नहीं ले सकते।

निजी संपत्तियों पर अधिकार की लक्ष्मण रेखा खींची
शीर्ष अदालत ने कहा कि कुछ मामलों में ही राज्य निजी संपत्तियों को ले सकते हैं या दावा कर सकते हैं। यानी सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता जिन्हें राज्य सार्वजनिक भलाई के लिए अपने अधीन ले लें। सुप्रीम कोर्ट के इस दूरगामी प्रभाव वाले फैसले ने जहां सरकार के निजी संपत्तियों पर अधिकार की सीमा रेखा खींची है, वहीं उस वर्ग की सोच को भी झटका दिया है जो कहते हैं कि सभी संपत्तियों का सर्वे करके उन्हें बराबरी से वितरित किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का मंगलवार का फैसला कहीं न कहीं निजी संपत्ति पर व्यक्ति के अधिकार पर मुहर लगाता है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने महाराष्ट्र के एक प्रकरण में संविधान पीठ को भेजे गए कानूनी सवालों का जवाब देते हुए यह निर्णय सुनाया है। नौ न्यायाधीशों ने 429 पेज के कुल तीन अलग-अलग फैसले दिए हैं जिसमें प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने स्वयं और छह अन्य न्यायाधीशों हृषिकेश राय, जेबी पार्डीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और अगस्टीन जार्ज मसीह की ओर से फैसला दिया है जिसमें उपरोक्त व्यवस्था दी है। जबकि जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से आंशिक सहमति जताई है। जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने बहुमत से असहमति जताने वाला फैसला दिया है।

कुछ परीक्षणों को पूरा करना होगा

जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत के फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले प्रत्येक संसाधन को केवल इसलिए समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता क्योंकि वह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। कोर्ट ने कहा कि किसी निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधन के योग्य मानने के पहले उसे कुछ परीक्षणों को पूरा करना होगा।
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या करते हुए कहा कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत आने वाले संसाधन के बारे में जांच कुछ विशेष चीजों पर आधारित होनी चाहिए। इसमें संसाधनों की प्रकृति, विशेषताएं, समुदाय की भलाई पर संसाधन का प्रभाव, संसाधनों की कमी तथा ऐसे संसाधनों के निजी हाथों में केंद्रित होने के परिणाम जैसे कारक हो सकते हैं। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित पब्लिक ट्रस्ट के सिद्धांत भी उन संसाधनों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जो समुदाय के भौतिक संसाधन के दायरे में आते हैं।

जज धूलिया ने अपने अलग फैसले में बहुमत से पूर्ण असहमति जताई
जज नागरत्ना ने अलग से दिए निर्णय में बहुमत से आंशिक सहमति जताई, लेकिन जज धूलिया ने अपने अलग निर्णय में बहुमत से पूर्ण असहमति जताते हुए कहा कि भौतिक संसाधनों को कैसे नियंत्रित और वितरित किया जाए, यह देखना संसद का विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन कब और किस तरह भौतिक संसाधनों की परिभाषा में आते हैं, यह न्यायालय द्वारा घोषित नहीं किया जा सकता।
यह मामला विशेष तौर पर संविधान के अनुच्छेद 31सी और 39(बी) और (सी) की व्याख्या से जुड़ा था। मुख्य मामला मुंबई से आया था और मामले में मुख्य याचिकाकर्ता भी प्रापर्टी ओनर्स एसोसिएशन एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य था

India’s cricketers will score 200 against New Zealand Designs of Mehendi for Karwa Chauth in 2024 Indian Women’s T20 World Cup Qualifiers Simple Fitness Advice for the Holidays Top 5 Business Schools in the World