लखनऊ, डॉ.जितेंद्र बाजपेयी : आय से अधिक सम्पत्ति की जांच होना है जरूरी पशु पालन निदेशालय लखनऊ में भ्रष्टाचार की बीमारी कैंसर की तरह व्याप्त है, जो नवीन पशु चिकित्सक विदों को भी अपनी चपेट में ले रही है। कई वर्षों से निदेशालय भ्रष्टाचार का गढ़ बना हुआ है। ट्रांसफर पोस्टिंग एवं सम्बद्धता के नाम पर करोड़ों की कमाई की जाती है एवं स्थनान्तरण निती की धज्जियां उड़ाते हुए निदेशालय में दसियों वर्ष से अधिकारी चौकड़ी जमाये बैठे हैं पिछले वर्ष ट्रांसफर सीजन में किये गये एक तिहाई पशु चिकित्सकों द्वारा अभी तक योगदान आख्या नहीं दी गयी है जिनकी हैसियत ट्रांसफर की राशि की नहीं है।
योगी सरकार में पारदर्शिता एवं गुड गवर्नेन्स के नाम पर काला स्पॉट है
उनसे सम्बद्धता के नाम पर स्वार्थ सिद्ध किया जाता है। योगी सरकार में पारदर्शिता एवं गुड गवर्नेन्स के नाम पर काला स्पॉट है। पशु पालन निदेशालय पशु पालक एवं पशु मित्रों का हित ताक पर रखकर राजसी गुण्डई का सटीक उदाहरण है निदेशालय, 20 प्रतिशत भी धरातल पर योजनाओं का कार्य परिलक्षित नहीं होता है एवं 100 प्रतिशत के ऊपर लक्ष्य प्राप्ति दिखायी जाती है, जहां एक ओर भारत में डिजिटलाइजेशन तेजी से बढ़ रहा है।
वहां पशु पालन विभाग द्वारा पोर्टल को खराब एवं नॉन प्रैक्टिकल करार दिया जाता है और झूठे आकड़ों में उलझा कर लक्ष्य प्राप्ति दिखायी जाती है। इन सब की धुरी है, विशेष सचिव श्री देवेन्द्र पाण्डेय जो पूर्व में कम्पोजिट स्कूल ग्राण्ड घोटाले में निलम्बित किये गये थे एवं वर्तमान में तीन वर्ष के ऊपर से विभाग में बैठकर रिमोट कंट्रोल से अधिकारियों पर नियंत्रण बनाये हुए है, उनके द्वारा कनिष्ठ अधिकारियों को प्रभार दिलवाकर मनमानी वसूली की जा रही है।
आई०पी०एल० की मैच की तरह उनके कार्यालय से अधिकारियों की हैसियत एवं तैनाती स्थान के नाम से लाखों की बोली लगायी जाती है। अपर निदेशक की 18 लाख एवं अलीगढ़ के 55 लाख की दर है। 06 महीनें बाद कार्यहित में एक अधिकारी को हटाकर इनके द्वारा दूसरा ले आया जाता है और सभी जनपदों पर ब्राहम्ण वर्ग का बोलबाला है।
अधिकारियों के वार्षिक मूल्यांकन के दर भी निर्धारित
अधिकारियों के वार्षिक मूल्यांकन के दर भी निर्धारित है एवं जनपद में पदस्थापना पर अनुपस्थिति की महीनेदारी बंधी हुई है। गौशाला में बिना टैग के पशुओं के नाम भरण-पोषण के लिए धनराशि आवंटित की जाती है एवं तीन से चार रूपए प्रति किलों अधिक पर भूसा क्रय कर टैक्स पेयर के पैसे का दुरूपयोग किया जा रहा है। मौत के आकड़े छिपाये जाते है ताकि आवंटित राशि कम न हो जाए।
मुख्यमंत्री सहभागिता योजना में खूटा बदलकर पशु पालक को पशु का आवंटन दिखाया जाता है।10 गुना दाम पर चहेते वेण्डर्स के साथ रेट फिक्सिंग दवाईयां विक्रय कर भारत सरकार की गाईडलाइंस की धज्जियां उड़ायी जाती है। 300 की चीज 2160 एवं 120 रूपए का हैण्डवॉश 370 रूपए में खरीदा गया, फर्जी सत्यापन कर करोड़ों की धनराशि का क्लेम लियाजाता है।
सच पूछे तो आधा पैसा भी पशु पालक स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा है। पशु वधशाला के तार भी इन्हीं से जुड़े हुए है, विशेष सचिव के दरबार में होती है। अधिकारियों की सुनवाई भ्रष्टाचार का रोल मॉडल का पशु पालन निदेशालय हर 06 माह में निदेशक बदल जाते है, ब्लैक लिस्टेड कम्पनी को करोड़ों का आर्डर दे दिया जाता है।
पशुधन विकास परिषद पर भी हुकुमत करना चाहता है निदेशालय, 20 वर्ष पहले सोसाइटी रजिस्ट्रेशन में पंजीकृत हुई परिषद के नियम ताक पर रखकर पहले मूल विज्ञापन को बदलवा कर आवेदक की आयु 62 वर्ष की गयी फिर बिना बोर्ड बैठक के सी०ई०ओ० से बिना कार्यभार लिये निदेशक द्वारा पद पर कब्जा कर लिया गया। निदेशालय के खर्चा की सी०ए०जी० ऑडिट होना जरूरी और बिहार के चारा घोटाले से बड़ा घोटाला का पर्दाफाश होना है। जरूरी पशु पालन निदेशालय 30 प्रतिशत कमीशन एवं गोवंश/साड़ के हक का खा रहे है l