नाबालिग आतंकी पर चलेगा वयस्क की तरह केस-हाईकोर्ट

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जबलपुर, संवाददाता : हाईकोर्ट ने ट्रेन ब्लास्ट मामले में नाबालिग आतंकी पर बाल न्यायालय में वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, एनआईए अधिनियम पर प्रभावी है। आरोपी अपराध के नतीजे समझने में सक्षम था, इसलिए मुकदमा बाल न्यायालय में चलेगा।

ट्रेन की बोगी में ब्लास्ट करने वाले नाबालिग आतंकी के खिलाफ वयस्क की तरफ मुकदमा बाल न्यायालय में चलेगा। हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि वर्तमान मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तथा एनआईए अधिनियम 2008 दोनों ही लागू हैं। जेजे अधिनियम किसी भी अन्य कानून पर अधिक प्रभावी है।

भोपाल-इंदौर पैसेंजर ट्रेन की बोगी में मार्च 2017 में हुआ था ब्लास्ट

गौरतलब है कि भोपाल-इंदौर पैसेंजर ट्रेन की बोगी में मार्च 2017 में शाजापुर के समीप ब्लास्ट हुआ था। एनआईए ने धारा 120-बी, 122, 307, 326, 324; विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3/4; रेलवे अधिनियम की धारा 150, 151; सार्वजनिक संपत्ति (रोकथाम) अधिनियम की धारा 4; और गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम की धारा 16 (बी), 18, 25, 38 और 39 के तहत प्रकरण दर्ज किया था। मामले को विवेचना में लिया था।

एनआईए ने मामले की जांच करते हुए ब्लास्ट के मास्टर माइंड 17 वर्षीय किशोर सहित अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करते हुए उनके खिलाफ आरोप-पत्र प्रस्तुत किया था। विधि विभाग ने प्रकरण के विचारण के लिए एएसजे न्यायालय भोपाल को अधिसूचित किया था।

कोर्ट मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे ने पूर्व में पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि अधिनियम, 2015 की धारा 18(3) के अनुसार बोर्ड धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन के बाद यह आदेश पारित करता है कि किसी बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की आवश्यकता है। बोर्ड ऐसे अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए अधिकार क्षेत्र रखने वाले बाल न्यायालय को स्थानांतरित करने का आदेश दे सकता है। उन्होंने आगे प्रस्तुत किया कि अधिकार क्षेत्र को बाल न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया है।

वर्तमान मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तथा एनआईए अधिनियम 2008 दोनों ही लागू

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि वर्तमान मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तथा एनआईए अधिनियम 2008 दोनों ही लागू हैं। जेजे अधिनियम किसी भी अन्य कानून पर अधिक प्रभावी है। एनआईए अधिनियम की धारा 13 अन्य कानून पर अधिक प्रभावी होता है, परंतु सिर्फ दंड प्रक्रिया संहिता पर प्रभाव डालती है। एनआईए अधिनियम, 2008 पर जेजे अधिनियम अधिक प्रभावी है।

विशेष रूप से अधिनियम 2015 की धारा 1(4) के प्रभाव पर विचार करते हुए यह माना जाता है कि जब एनआईए अधिनियम के तहत निर्धारित अनुसूचित अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की जाती है और एक किशोर को बाल न्यायालय द्वारा वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का निर्देश दिया जाता है, तो मामले की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र बाल न्यायालय को होगा। एकलपीठ ने कानूनी अनुभव तथा गहन ज्ञान के बल पर संदर्भित प्रश्न के उत्तर देने के लिए कोर्ट मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे का धन्यवाद किया।

विचारण न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया था

आरोपी आतंकी की तरफ से विचारण न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया था। आरोपी किशोर की आयु 18 वर्ष से कम होने के कारण विशेष न्यायालय ने विधि के अनुसार उसके प्रकरण को विचारण के लिए किशोर न्याय बोर्ड को भेज दिया था। किशोर न्याय बोर्ड भोपाल के प्रधान न्यायाधीश ने 28 अप्रैल 2024 को पारित आदेश में कहा था कि घटना की तारीख पर किशोर की आयु 17 वर्ष थी, परंतु वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ था। उसे किए गए अपराधों के परिणामों को समझने में सक्षम था।

बोर्ड ने प्रकरण को बाल न्यायालय में स्थानांतरित करने के संबंध में आदेश दिए थे। जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा था कि प्रकरण की सुनवाई एनआईए अधिनियम के तहत अधिसूचित न्यायालय या अधिनियम 2005 की धारा 25 के अनुसार अधिसूचित बाल न्यायालय में की जाए।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी के विशेष लोक अभियोजन अधिवक्ता दीपेश जोशी ने तर्क दिया कि एनआईए अधिनियम के तहत अधिसूचित न्यायालय द्वारा विचारण किया जाना चाहिए। अधिनियम की धारा 13 में प्रावधान है एजेंसी द्वारा दर्ज अपराध की सुनवाई केवल उस विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी, जिसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र में आता है।

एनआईए अधिनियम के तहत अनुसूचित अपराध गंभीर प्रकृति के होते हैं जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, राज्य के हित और संप्रभुता शामिल होती है और ऐसी गंभीर स्थिति से निपटने के लिए एनआईए अधिनियम के तहत एक विशेष प्रक्रिया निर्धारित की गई है। गंभीर और जघन्य अपराध का विचारण एनआईए अधिनियम के तहत गठित विशेष न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए।

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