नई दिल्ली, एजेंसी : लगातार गर्म हो रही धरती माँ को बचाने के लिए भारत केवल हवा में बातें नहीं करता बल्कि अपने कदमों से साबित करता है कि भारतीय यूं ही धरती को माता नहीं कहते।
भारत ने न केवल आगे बढ़कर 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन करने का लक्ष्य रखा है जबकि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई कदम उठा रहा है। इसी सिलसिले में भारतीय वैज्ञानिको ने ऐसा उपकरण बनाया है जिससे सौर ऊर्जा का उपयोग करके पानी से ग्रीन हाइड्रोजन बनाया जा सकेगा।
ग्रीन हाइड्रोजन सबसे स्वच्छ ईंधनों में से एक
गौरतलब है कि ग्रीन हाइड्रोजन सबसे स्वच्छ ईंधनों में से एक है, जो उद्योगों को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने, वाहनों को चलाने और अक्षय ऊर्जा संग्रहीत करने में सक्षम है, किंतु ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में काफी फंड की जरूरत होती है।
अब तक ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का किफायती उपकरण या तरीका नहीं था। इस उपकरण को विकसित कर भारतीय विज्ञानियों ने एक बार फिर अपनी मेधा का लोहा मनवाया है। साबित किया कि फंड की कमी में भी भारतीय बेहतरीन परिणाम दे सकते हैं।
बेंगलुरु के वैज्ञानिको की टीम ने अगली पीढ़ी का यह उपकरण विकसित किया
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, सेंटर फार नैनो एंड साफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस), बेंगलुरु के वैज्ञानिको की टीम ने अगली पीढ़ी का यह उपकरण विकसित किया है, जो जीवाश्म ईंधन या महंगे संसाधनों पर निर्भर किए बिना, केवल सौर ऊर्जा और पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में मौजूद सामग्रियों का उपयोग करके पानी के अणुओं से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करता है।
इस उपकरण ने असाधारण दीर्घकालिक स्थिरता का प्रदर्शन किया, क्षारीय परिस्थितियों में 10 घंटे से अधिक समय तक लगातार काम किया और प्रदर्शन में गिरावट केवल चार प्रतिशत रही जो एसआइ-आधारित फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल सिस्टम में दुर्लभ उपलब्धि है।
इस शोध का नेतृत्वकर्ता सीईएनएस के डॉ. आशुतोष के. सिंह ने कहा, स्मार्ट सामग्रियों का चयन करके और उन्हें हेटेरोस्ट्रक्चर में संयोजित करके, हमने ऐसा उपकरण बनाया है जो न केवल प्रदर्शन को बढ़ाता है, बल्कि बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन भी किया जा सकता है। इसके साथ ही हम किफायती और बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा -से-हाइड्रोजन ऊर्जा प्रणालियों के और करीब पहुंच गए हैं। इस शोध को जर्नल आफ मेटेरियल केमेस्ट्री ए में प्रकाशित किया गया है।