आज़मगढ़, प्रमोद कुमार तिवारी : उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ के कुबा क्षेत्र में स्थित सिधौना गांव न केवल एक ग्रामीण परिदृश्य है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक चेतना का एक जीवंत केंद्र भी है। इसी भूमि पर स्थित मां सिद्धेश्वरी धाम, न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि वीरता, भक्ति और चमत्कारों की अद्वितीय गाथा भी है। माना जाता है कि इस पावन धाम की उत्पत्ति उस महान क्षत्राणी वीरांगना ईश्वरी की स्मृति से जुड़ी है, जिन्होंने मुगल आक्रमण के दौर में अपने दो वीर भाइयों राधा राय और उदल राय के साथ क्षेत्र की रक्षा हेतु अद्भुत साहस का परिचय दिया।
तलवार, तीर-कमान और कृपाण उनके खेल के साधन थे। जब शत्रु अत्यधिक बलशाली हो गए, और उनकी पवित्रता पर संकट आया, तो उन्होंने जंगल के एक कुएं में जलसमाधि लेकर वीरगति को प्राप्त किया। कई वर्षों बाद, गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति ठाकुर रामबरन सिंह को माता ने स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर निर्माण का आदेश दिया। उन्होंने ग्रामीणों के सहयोग से इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की।
निर्माण कार्य के दौरान एक अद्भुत चमत्कार घटित हुआ
निर्माण कार्य के दौरान एक अद्भुत चमत्कार घटित हुआ जिसने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व, ठाकुर रामबरन सिंह के दो पौत्र पास के पोखरे में डूब गए और डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शोक संतप्त रामबरन सिंह ने माता से कठोर वचन कहे “यदि मेरे पौत्र जीवित नहीं हुए, तो मैं मूर्ति खंडित कर दूंगा!” लेकिन माता की कृपा अपार थी। कुछ ही देर में दोनों बालक धीरे-धीरे चेतन हो उठे और पूर्णतः स्वस्थ हो गए।
यह घटना माता की साक्षात उपस्थिति का प्रतीक बन गई और तब से मां को ‘सिद्धेश्वरी’ देवी के रूप में पूजा जाने लगा। आज यह धाम सिर्फ क्षत्रिय समाज की कुलदेवी नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज की आराध्या बन चुकी हैं। विशेष परंपराओं में, इस क्षेत्र की बेटियों के विवाह के बाद उनके प्रथम पुत्र का मुंडन संस्कार यहीं किया जाना अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक समरसता का प्रतीक यह धाम हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच भी आस्था का केंद्र है, जहां सभी लोग धर्म और जाति से ऊपर उठकर माता के चरणों में श्रद्धा निवेदित करते हैं।
आज मां सिद्धेश्वरी धाम एक भव्य मंदिर परिसर में परिवर्तित हो चुका है, जिसमें भोलेनाथ, भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधा-कृष्ण, हनुमान जी, छठ माता आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर परिसर में मैना पोखरा में छठ माता का मंदिर पार्क में रंग-बिरंगे फूल, पौधे धर्मशाला, रामलीला स्थल प्रत्येक वर्ष होने वाले दो विशाल मेले कार्तिक पूर्णिमा की व देव दीपावली पर हजारों दीपों से यह धाम जगमगा उठती है। यह धाम न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है, बल्कि पर्यटन, सांस्कृतिक आयोजनों और ग्रामीण समृद्धि का आधार भी बन सकता है यदि सरकार और प्रशासन का सहयोग इसे प्राप्त हो।
यह धाम स्थानीय लोगों के सहयोग से संचालित
वर्तमान में यह धाम स्थानीय लोगों के सहयोग से संचालित हो रहा है। दुर्भाग्यवश, अब तक किसी भी स्तर पर सरकारी सहयोग या संरक्षण नहीं मिल पाया है। यदि यह स्थान पर्यटन के मानचित्र पर लाया जाए, सौंदर्यीकरण व बुनियादी संरचनाओं को और उन्नत किया जाए, तो यह एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल बन सकता है, जो आस्था के साथ-साथ राजस्व का भी स्रोत होगा। हाल ही में, स्थानीय निवासीअनुज अमन सिंह ने मां सिद्धेश्वरी धाम की माता के चमत्कारों, इतिहास और श्रद्धा से विस्तृत जानकारी दी।
अमन द्वारा दी गई जानकारी और उनके भावनात्मक जुड़ाव ने मेरे हृदय को गहराई से छू लिया। मैं दिल की गहराई से उनका आभार व्यक्त करता हूँ और मां सिद्धेश्वरी से प्रार्थना करता हूँ कि वे हम सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें। मां सिद्धेश्वरी धाम, एक मंदिर भर नहीं यह वह स्थान है जहां इतिहास जीवंत होता है, श्रद्धा चमत्कार बनती है, और प्रकृति, संस्कृति व आध्यात्मिकता का संगम होता है। यह धाम उस ऊर्जा का प्रतीक है, जो भक्ति को शक्ति में बदलती है और जो हर मन को ईश्वरीय अनुभूति से भर देती है। “जो सच्चे मन से माता के दरबार में आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।”