दुनिया के पहले ‘लिटिल मास्टर’, टिक जाए तो आउट करना होता था मुश्किल

Hanif-Mohammad

सचिन तेंदुलकर नहीं ये थे दुनिया के पहले ‘लिटिल मास्टर’, टिक जाए तो आउट करना होता था मुश्किल

नई दिल्ली ,स्पोर्ट्स डेस्क : क्रिकेट की दुनिया में जब भी लिटिल मास्टर का जिक्र होता है सभी के जेहन में सचिन तेंदुलकर का नाम आता है। कुछ लोग जानते हैं कि सचिन से पहले सुनील गावस्कर को भी इसी नाम से बुलाया जाता था। लेकिन इन दोनों से पहले भी एक बल्लेबाज था जिसे ये नाम दिया गया था। बल्कि ये कहना सबसे सही होगा कि ये खिलाड़ी क्रिकेट की दुनिया का पहला लिटिल मास्टर था। इस खिलाड़ी का नाम है हनीफ मोहम्मद।

21 दिसंबर 1934 को गुजरात में जन्मे हनीफ बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए और वहीं से क्रिकेट खेली। पाकिस्तान में जब वसीम अकरम, इमरान खान, जहीर अब्बास का नामों निशान नहीं था तब हनीफ ही थे जिन्होंने इस देश में क्रिकेट के रोमांच को घर-घर पहुंचाया। हनीफ पाकिस्तान क्रिकेट के पहले सुपरस्टार थे।

वेस्टइंडीज को किया परेशान

हनीफ की हाइट सिर्फ पांच फुट तीन इंच थी, लेकिन जब वह मैदान पर बल्लेबाजी करने उतरते थे तो अच्छे से अच्छे गेंदबाज को कंपा और थका देते थे। इसी कारण उन्होंने लिटिल मास्टर कहा जाता था। उनकी बेहतरीन बल्लेबाजी का एक उदाहरण 1957-58 के वेस्टइंडीज दौरे पर मिलता है।

ब्रिजटाउन में खेले गए टेस्ट मैच में हनीफ ने अपनी बल्लेबाजी का ऐसा जादू दिखाया कि वेस्टइंडीज की टीम हैरान रह गई। उसका जीत का सपना टूट गया। वेस्टइंडीज ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 579 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया।

उस समय छह दिन के टेस्ट मैच होते थे जिनमें से एक दिन ब्रेक का होता था। पाकिस्तानी टीम तीसरे दिन ही अपनी पहली पारी में 106 रनों पर ढेर हो गई। वह वेस्टइंडीज से 473 रन पीछे थे और ऐसे में वेस्टइंडीज ने उसे फॉलोऑन दिया। यहां पाकिस्तान की हार तय लग रही थी, लेकिन हनीफ के बल्ले से टेस्ट इतिहास की बेहतरीन पारी आना बाकी था।

तीसरे दिन का खेल खत्म होने तक हनीफ ने पाकिस्तान की दूसरी पारी में 61 रन बनाए थे

तीसरे दिन का खेल खत्म होने तक हनीफ ने पाकिस्तान की दूसरी पारी में 61 रन बनाए थे। रॉय गिलक्रिस्ट की गेंदों का उन्होंने जमकर सामना किया। अगले तीन दिन हनीफ ने विकेट पर अंगद की तरह पैर जमा लिए। आखिरी दिन तो उन्होंने काफी दर्द में गेंदबाजी की क्योंकि गिलक्रिस्ट की गेंदों को शरीर पर खाने के कारण वह दर्द में थे। चौथे दिन हनीफ ने 100 रन जोड़े। पाकिस्तान ने उस दिन सिर्फ एक विकेट खोया। पांचवें दिन का खेल खत्म होने तक हनीफ 270 रन बनाकर खेल रहे थे।

इस मैच में हनीफ ने कमाल किया और आखिरी दिन तिहरा शतक जमाया। उन्होंने कुल 970 मिनट बल्लेबाजी की और 337 रन बनाए। उन्होंने चार बल्लेबाजों के साथ शतकीय साझेदारी की जिसमें से एक उनके भाई वजीर के साथ भी थी। पाकिस्तान जहां हार की कगार पर थी वहां उसने बढ़त लेने के साथ ही आठ विकेट के नुकसान पर 657 रनों पर अपनी पारी घोषित कर दी। मैच ड्रॉ पर खत्म हुआ और हनीफ की ये पारी टेस्ट क्रिकेट की इतिहास में हमेशा के लिए अमर रही।

ऐसा रहा करियर

हनीफ ने पाकिस्तान के लिए 17 साल तक क्रिकेट खेली। इस दौरान उन्होंने 55 टेस्ट मैच खेले जिसमें 1952 में पाकिस्तान और भारत के बीच खेला गया टेस्ट मैच भी शामिल था। अपने करियर में हनीफ ने 43.98 की औसत से 3915 रन बनाए। हनीफ की कई पीढ़ियों ने पाकिस्तान के लिए क्रिकेट खेला, लेकिन जो मुकाम इस लिटिल मास्टर ने हासिल किया वो कोई और नहीं कर पाया।

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