नई दिल्ली,ब्यूरो : उत्तरप्रदेश में 19 प्रतिशत वोटों की साझेदार बसपा की ओर न तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने हाथ बढ़ाया और न ही विपक्षी दलों ने कोई महत्व दिया। अब तक तो कांग्रेस से बसपा की बातचीत की अटकलें चल रही थीं, लेकिन बंगलुरू में विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के आकार लेते ही संभवत: रही-सही संभावनाएं भी सिमट गईं।
शायद यही वजह है कि कुछ समय से कांग्रेस के प्रति कुछ नरम नजर आ रहीं बसपा प्रमुख मायावती का रुख अचानक तीखा हो गया है। कांग्रेस और उसके साथ गठबंधन करने वाली पार्टियों को जातिवादी-पूंजीवादी सोच वाला बताते हुए ऐलान कर दिया कि न एनडीए और ना इंडिया, बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी। हां, कार्यकर्ताओं-समर्थकों से आहृवान ये कि केंद्र में अब किसी की भी मजबूत नहीं, बल्कि मजबूर सरकार ही बने।
मायावती ने बुधवार को दावा किया कि यदि एनडीए और इंडिया गठबंधन सत्ता पाने की तैयारी कर रहे हैं तो तैयारियों में बसपा भी पीछे नहीं है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपनी जैसी जातिवादी-पूंजीवादी सोच रखने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करके फिर से केंद्र की सत्ता में आने के सपने देख रही है तो एनडीए भी अपने गठबंधन को हर मामले में मजबूत बनाने में जुटा है। यह 300 सीटें जीतने का दावा कर रहा है, जबकि इनकी कथनी और करनी में कांग्रेस की तरह कोई खास अंतर नजर नहीं आता है।
मायावती ने दोनों गठबंधनो से बनाई दूरिया
दोनों गठबंधनों की कार्यशैली, नीति और नीयत को गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति एक समान बताते हुए बसपा प्रमुख ने दावा किया कि इसी वजह से बसपा ने सत्ताधारी गठबंधन व विपक्षी गठबंधन से ज्यादातर अपनी दूरी ही बनाकर रखी है। प्रचंड मोदी लहर के बावजूद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने 19 प्रतिशत वोटों के जनाधार को बचाने में सफल रहीं मायावती ने अपनी इस ताकत को दिखाने का भी संकेत ‘प्रतिशोध’ के अंदाज में दिया है।
बहुजन समाज की बजाए सर्वजन पर जोर देकर फिर सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले से आस जोड़े बैठीं बसपा मुखिया ने कमजोर वर्गों के लोगों का आहृवान किया है कि आपसी भाईचारा के आधार पर बहुजन समाज पार्टी को मजबूती देना है, यहां कोई भी गठबंधन केंद्र व राज्यों की सत्ता में पूरी मजबूती के साथ न आ सके। इनकी मजबूत सरकार नहीं, मजबूर सरकार बने।