नई दिल्ली, एजेंसी : आपराधिक न्याय प्रणाली में बढ़ा उलट फेर परिवर्तन के लिए लोकसभा ने बुधवार को तीन विधेयकों को पारित कर दिया। नए कानूनों में त्वरित न्याय देने पर विशेष ध्यान दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक कानूनी रूप से लागू होने के बाद देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव आएगा। गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक , नए कानूनों में दंड की जगह न्याय देने पर जोर दिया गया है।
पेश हैं तीनों कानूनों की विशेष बातें
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) को भारतीय दंड संहिता (आइपीसी), 1860 की जगह लेगा । बीएनएस में 20 नए अपराध जोड़े गए हैं, आइपीसी में मौजूद 19 प्रविधानों को हटा दिया गया है। 33 अपराधों में कारावास की सजा में वृद्धि की गई है। 83 अपराधों में जुर्माने की सजा में वृद्धि की गई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रविधान कर दिया गया है। छह अपराधों में ‘सामुदायिक सेवा’ की सजा का प्रविधान में वृद्धि कर दिया गया है।
दस्तावेज की परिभाषा में डिजिटल रिकॉर्ड और इलेक्ट्रानिक शामिल किए गए हैं। ‘चल संपत्ति’ की परिभाषा का विस्तार कर इसमें हर प्रकार की संपत्ति को सम्मिलित कर लिया गया है। बच्चो और महिला के खिलाफ अपराध पर नया अध्याय पेश कर दिया गया है।
छोटे संगठित अपराध, संगठित अपराध,आतंकवादी कार्य , भीड़ की हिंसा, हिट एंड रन, अपराध करने के लिए बच्चों को साथ रखना, धोखे से महिलाओं का यौन शोषण, छीनना, भारत के बाहर रहकर उकसाना, भारत की संप्रभुता, अखंडता और एकता को खतरे में डालने वाले कृत्य और झूठ या फर्जी खबरों का प्रकाशन शामिल किए गए हैं।
आत्महत्या करने का प्रयास अपराध की सूची से हटाया गया
आत्महत्या करने का प्रयास अपराध की सूची से हटा दिया गया है। भिक्षावृत्ति को तस्करी के लिए शोषण के रूप के रूप में प्रस्तुत किया गया है। पांच हजार रुपये से कम मूल्य की चोरी पर सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा का प्रविधान कर दिया गया है। ‘क्वीन’, ‘ब्रिटिश कैलेंडर’, ‘ब्रिटिश इंडिया, ‘जस्टिस आफ द पीस’ जैसे औपनिवेशिक शब्द हटा दिए गए हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1898 की जगह लाया गया है। मजिस्ट्रेट को जुर्माना लगाने की शक्ति बढ़ाई गई। घोषित अपराधी का दायरा बढ़ा दिया गया। इसके पूर्व 19 अपराध इसमें शामिल थे, जिनमें दुष्कर्म के प्रकरण शामिल नहीं थे। अब 10 वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले सभी अपराध शामिल किए गए हैं।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पूर्वानुमति से तीन वर्ष से कम सजा वाले अपराधों में गिरफ्तारी का प्रविधान कर दिया गया है। हिरासत अवधि के पहले 40/60 दिनों के लिए 15 दिनों की पुलिस हिरासत की अनुमति होगी। यह जमानत से इन्कार करने का आधार नहीं होगा। अपराध से अर्जित आय को जब्त करने और कुर्की करने की प्रक्रिया को सम्मिलित कर लिया गया है।
देशभर में जीरो एफआइआर की शुरुआत-
-एफआइआर दर्ज करने की इलेक्ट्रानिक सुविधा शुरू होगी।
-तीन वर्ष से लेकर सात वर्ष से कम की सजा वाले अपराधों में प्रारंभिक जांच शुरू होगी
-गंभीर अपराध की जांच सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी द्वारा करने का प्रविधान किया गया है।
-दोषमुक्ति के प्रकरणों में जमानत को सरल बना दिया गया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेगा।
प्रस्तावित कानून में 2 नई धाराएं और 6 नई उपधाराएं जोड़ी गई हैं
इलेक्ट्रानिक रूप से प्राप्त बयान ‘साक्ष्य’ की परिभाषा में सम्मिलित किए गए। इलेक्ट्रानिक और डिजिटल रिकार्ड को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मानने के लिए और अधिक मानक जोड़े गए–साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रानिक या डिजिटल रिकार्ड की कानूनी मान्यता दी गयी है । जीवनसाथी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही में सक्षम गवाह के रूप में पति/पत्नी को सम्मिलित किया गया है । साथी की प्रमाणित गवाही के आधार पर दोषसिद्धि को कानून बना दिया गया है। औपनिवेशिक शब्दावली के संदर्भ हटा दिए गए। भाषा को आधुनिक और लैंगिक रूप से संवेदनशील बना दिया गया है ।