बागेश्वर, संवाददाता : कभी पांच मीटर चौड़ा होने वाला भागीरथी गधेरा अब दो मीटर ही रह गया है। गधेरे में स्रोत से लेकर संगम तक कूड़े का अंबार लगा हुआ है। तीस साल पहले तक गधेरे से मंडलसेरा, गाड़गांव और फल्टनियां गांव में करीब 600 नाली भूमि की सिंचाई होती थी।
नमामि गंगे अभियान का असर धरातल पर नहीं
नदियों को साफ और स्वच्छ रखने के लिए चलाए जा रहे नमामि गंगे अभियान का असर धरातल पर नहीं दिख रहा है। सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी भागीरथी अस्तित्व बचाने के लिए छटपटा रही है। निजी और सरकारी अतिक्रमण के कारण धीरे-धीरे नाला सिकुड़ता जा रहा है। कभी पांच मीटर चौड़ा होने वाला भागीरथी गधेरा अब दो मीटर ही रह गया है। गधेरे में स्रोत से लेकर संगम तक कूड़े का अंबार लगा हुआ है।
भागीरथी गधेरा जिला मुख्यालय के समीपवर्ती गांव छतीना, गाड़गांव और मालता रौली के पानी से मिलकर बना है। तीस साल पहले तक गधेरे से मंडलसेरा, गाड़गांव और फल्टनियां गांव में करीब 600 नाली भूमि की सिंचाई होती थी। गाड़गांव और भागीरथी क्षेत्र के लोग गधेरे के पानी का उपयोग पीने और अन्य कार्यों में करते थे। ज्यों-ज्यों नगर में विकास होता गया, त्यों-त्यों गधेरा सिकुड़ने लगा। गधेरे के ऊपर मीट बाजार और अन्य भवनों का निर्माण कर पालिका आय अर्जित कर रही है लेकिन गधेरे की दशा सुधारने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
बागनाथ मंदिर के समीप से होकर बहने वाली सरयू नदी की सहायक नदी होने के चलते नगर में भागीरथी गधेरे का भी विशेष महत्व है। गधेरा न केवल प्रदूषण का सामना कर रहा है बल्कि इस पर अतिक्रमण भी किया गया है। शहरी क्षेत्र में किसी भी निर्माण कार्य के लिए नियम बनाने वाली नगरपालिका ने गधेरे में अतिक्रमण कर न केवल भवन का निर्माण किया बल्कि उसमें मीट बाजार खोल दिया। कभी पांच मीटर चौड़ा होने वाला भागीरथी गधेरा अब सिमट कर महज दो मीटर ही रह गया है। नाले की सफाई के लिए जिम्मेदार नगरपालिका आज तक इस गधेरे के लिए कोई नीति नहीं बना पाई।