महोबा, संवाददाता : वर्ष 1992 में ली गई अनोखी प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए मध्य प्रदेश के जिला दमोह के बटियागढ़ गांव के साधु सिर की चोटी से राम रथ खींचते अयोध्या के लिए पैदल निकल पड़े हैं। 170 किमी की दूरी तय कर साधु बद्री बाबा रविवार को महोबा पहुंचे। जहां हिंदू संगठनों ने जगह-जगह फूलो की वर्षा कर साधु बद्री बाबा स्वागत किया। शहर के बजरं चौक स्थित हनुमान मंदिर में रथ लेकर जा रहे साधु बद्री बाबा ने पूजा- पाठ किया ।
कानपुर-सागर राष्ट्रीय राजमार्ग पर रथयात्रा लेकर चल रहे बद्रीप्रसाद विश्वकर्मा उर्फ ब्रदी बाबा शहर के बजरंग चौक स्थित संकटमोचन हनुमान मंदिर पहुंचे। उन्होंने बताया कि वह मध्यप्रदेश के जनपद दमोह के बटियागढ़ से 11 जनवरी को सिर की चोटी में रस्सी से रथ बांधकर पैदल निकले थे। 22 जनवरी को वह 501 किमी की दूरी तय कर अयोध्या पहुंचेंगे। हर जगह उन्हें भरपूर प्यार और स्नेह मिल रहा है। जिससे उनके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होता है।
500 वर्षो से भगवान तिरपाल में रह रहे हैं। अब भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होने पर बहुत खुशी हो रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इन पुनीत कार्य में अहम योगदान बताया। रथ में राम, जानकी, लक्ष्मण व हनुमान की प्रतिमा लेकर चल रहे हैं। इस अवसर पर हिंदू जागरण मंच के जिला संयोजक अंकित राजपूत, विजय तिवारी, नीरज गुप्ता, विश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष मनोज शिवहरे, मनोज देवलिया, समाजसेवी शिवकुमार गोस्वामी,आदि उपस्थित रहे।
राम मंदिर में व्यवधान आने पर ली थी प्रतिज्ञा
सिर की चोटी से रामरथ खींचते अयोध्या जा रहे बद्री बाबा ने कहा कि करोड़ों रामभक्तों की तरह वह भी अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में सम्मिलित होते लेकिन राम मंदिर निर्माण में साल-दर-साल आ रही अड़चन के चलते वह हताश और दुखी हो गए थे। वर्ष 1992 में उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि जब भी भगवान राम का भव्य और दिव्य राम मंदिर बनेगा, तब वह अपनी चोटी में राम रथ बांधकर पैदल ही अयोध्या जाएंगे। की गई प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वह अयोध्या जा रहे हैं।
रोजाना दाल-रोटी खाकर चलते 50 से 55 किमी
अपने सर की चोटी में रथ बांधकर अयोध्या जा रहे साधु बद्री बाबा मध्यप्रदेश के बटियागढ़ गांव में स्थित हनुमान मंदिर में रहकर पूजा- पाठ करते हैं। वह बचपन से ही गुरु के सानिध्य में रहकर मंदिर की कुटिया में रहते हैं। सिर की चोटी से राम रथ बांधकर वह रोजाना 50 से 55 किमी का सफर तय कर रहे हैं। दिन में एक बार वह सादा भोजन में दाल-रोटी खाकर चलते हैं। साधु बद्री बाबा का कहना है कि 500 वर्षो बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। इससे अच्छा समय और कुछ नहीं हो सकता।