भारत में बौद्ध धम्म के पुनरुत्थान में धम्म विचया कार्यक्रम आयोजित

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रायबरेली,शैलेश पाल : भारत में बौद्ध धम्म के पुनरुत्थान में अशोक के योगदान एवं त्रिपिटक में अभिधम्म के मूल सिद्धांतों पर धम्म विचया कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें अशोक महान के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। इसके अलावा अशोक की लोक कल्याणकारी धम्म नीति की चर्चा की गई।उनके द्वारा बनवाये गए प्रमुख शिलालेखों, स्तंभ लेखों का वर्णन किया गया। अशोक विजयदशमी की प्रासंगिकता, बौद्ध स्तूपों का निर्माण, तृतीय बौद्ध संगीति पर विस्तृत संवाद हुआ।

डिडौली स्थित स्वागत होटल में हुआ आयोजन

अशोक विजयादशमी एवं अभिधम्म दिवस के अवसर पर रायबरेली के डिडौली स्थित स्वागत होटल में अभिधम्मपिटक के मूल सिद्धांतों पर आधारित एक दिवसीय धम्म विचया कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन धम्मा फाऊंडेशन इंडिया के द्वारा किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ संजय भारतीय ने किया। उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक के शासनकाल में भारत बहुसंख्यक रूप से बौद्ध राष्ट्र रहा जिसमें लगभग 80% आबादी बौद्धों की थी। इसके पश्चात 14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहब डॉ अंबेडकर द्वारा नागपुर के दीक्षा समारोह में 5 लाख से अधिक लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा लिया, लेकिन आज वर्तमान समय में भारत में बौद्धों की संख्या घटकर मात्र 0.74% रह गई है, जो की चिंताजनक है।

प्रमुख वक्ता के रूप में प्राचार्य राजकीय डिग्री कॉलेज हरीपुर निहस्था डॉ जयशंकर जी ने कहा कि बौद्ध धम्म के पुनरुत्थान में अशोक महान के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व आज भी प्रासंगिक है। कलिंग युद्ध के पश्चात उन्होंने युद्ध नीति को त्याग कर बौद्ध नीति को अपनाया और सैकड़ो धम्म महामात्यों की नियुक्ति करके लोक कल्याणकारी धम्म नीति की शुरुआत की। अशोक ने अनेकों शिलालेखों और स्तंभ लेखों के माध्यम से जनकल्याण का कार्य किया।

फिरोज गांधी कॉलेज रायबरेली में बी.एड्. विभाग के प्रोफेसर डॉ सुभाष चंद्रा ने कहा कि सम्राट अशोक ने 41 वर्ष का लंबा शासन किया जिसमें शुरुआत के 7 वर्ष वह चण्ड अशोक के रूप में शासन किया लेकिन शेष 34 वर्ष वह धम्म अशोक के रूप में शासन किया। उसका मानना था कि उसके राज्य की संपूर्ण जनता उसकी संतान है। सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन न केवल कलिंग युद्ध के नरसंहार से हुआ था बल्कि उसके पहले से ही उनके परिवारीजन बौद्ध धम्म से जुड़े थे, इसलिए वह बुद्ध की शिक्षाओं से पहले से ही परिचित था।

कलिंग युद्ध उसके साम्राज्यवादी विस्तार की नीति का परिणाम

कलिंग युद्ध उसके साम्राज्यवादी विस्तार की नीति का परिणाम है। सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में 84000 स्तूपों का निर्माण कराया। बौद्ध तीर्थ स्थलों का पैदल भ्रमण किया। अपने प्रिय पुत्र महेंद्र एवं प्रिय पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका आदि देशों में भेज कर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार कराया।

पूर्व चिकित्साधिकारी डॉ. आर.पी. मौर्य ने जेम्स प्रिंसेप के 1835 के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि भारत में जेम्स प्रिंसेप जैसे अंग्रेज भारत न आए होते और उत्खनन कार्य न किए होते तो बुद्ध और अशोक का धम्म जमीन्दोज ही रहता। उन्होंने जमीन्दोज बुद्ध और अशोक के धम्म को विश्व पटल पर लाने का सराहनी कार्य किया। आगे उन्होंने कहा कि मौर्य कोई जाति नहीं है, बल्कि यह एक संस्कृति है, जो कि मौर्य शासन काल से अभी तक चली आ रही है।

धम्मा फाउंडेशन के प्रमुख ट्रस्टी और फाउंडर अखिल सिंधु तथा उपाशिका आशा ने लोगों को अभिधम्म का परिचय कराया तथा धम्मसंगनी की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की। मिस आशा ने धम्म अशोक के पुत्र भिक्खु महेंद्र और पुत्री भिक्खुणी संघमित्रा के द्वारा श्रीलंका की यात्रा का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया और बताया कि संघमित्रा ने बोधगया के बोधि वृक्ष की शाखा श्रीलंका के बौद्ध शासक राजा तिस्स को सौंपा था जो कि अनुराधा पुरम में लगाया गया। संघमित्रा के प्रयासों से ही श्रीलंका में हजारों महिलाओं ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली। भिक्खु महेंद्र के प्रयासों से श्रीलंका के शासक राजा तिस्स प्रियदर्शी शासक कहलाए। सम्राट अशोक का कार्य असीमित है।उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।

धम्मा फाऊंडेशन इंडिया के प्रमुख ट्रस्टी और फाउंडर अखिल सिंधु ने अभिधम्म पिटक का किया विस्तृत वर्णन

मुख्य अतिथि के रूप में धम्मा फाऊंडेशन इंडिया के प्रमुख ट्रस्टी और फाउंडर अखिल सिंधु ने अभिधम्म पिटक का विस्तृत वर्णन किया। धम्म विचया के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि धम्म पर विस्तृत, सारगर्भित तथा तर्कपूर्ण विचार विमर्श करना ही धम्म विचया है, जिसमें अनुसंधान करना, सत्य की खोज करना, समझ विकसित करना, गुनों का विश्लेषण करना, सिद्धांतों की जांच करना शामिल है। उन्होंने अभिधम्म पिटक की सात पुस्तकों का भी जिक्र किया, जिसमें प्रमुख और पहली पुस्तक धम्म संगनी का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया। उन्होंने लोगों के द्वारा पूछे गए अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर भी दिया।

धम्म विचया कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध वंदना, तिसरण और पंचशील से की गई। कार्यक्रम के अंत में धम्म के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले समाज सेवियों को धम्मा फाऊंडेशन इंडिया की तरफ से प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिन्ह देखकर सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर पवन तूफानी एवं म्यूजिकल ग्रुप की तरफ से प्रस्तुत मिशनरी गीत काफी सराहे गए। कार्यक्रम का समापन मंगल मैत्री कामना के साथ हुआ।

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