नई दिल्ली,ब्यूरो : भारत ने जम्मू-कश्मीर की किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं पर हेग स्थित परमानेंट कोर्ट आफ आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता के लिए गठित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय) के सुनवाई शुरू करने से मना कर दिया है।
कहा है कि कोर्ट की भारत की पनबिजली परियोजनाओं पर सुनवाई अवैध है और भारत उसकी प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा। कोर्ट ने भारत और पाकिस्तान के बीच के विवाद को खत्म करने के लिए इस प्रकरण में मध्यस्थता करने का निर्णय लिया था।
इस बीच पाकिस्तान ने उम्मीद जताई है कि भारतसिंधु जल समझौते के प्रविधानों को सद्भावना से लागू करेगा। भारत ने पाकिस्तान द्वारा दी गई अर्जी पर इस ट्रिब्यूनल में शुरू हुई सुनवाई प्रक्रिया में सम्मिलित न होने का निर्णय लिया है। पाकिस्तान ने यह प्रार्थना पत्र सिंधु जल समझौते के तहत तटस्थ विशेषज्ञ कमेटी द्वारा विवादित बिंदुओं का परीक्षण कर लेने के बाद दिया है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार कि भारत इस प्रकरण में इस तरह की अवैध और समानांतर प्रक्रिया को मान्यता देने या उसमें सम्मिलित होने के लिए बाध्य नहीं है। जनवरी में भारत ने सिंधु जल समझौते की समीक्षा के लिए नोटिस दिया था। इसके बावजूद पाकिस्तान ने विवादों को निपटाने के तय व्यवस्था में रुचि नहीं दिखाई। विश्व बैंक की मध्यस्थता में 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच यह जल समझौता हुआ था।
यह जल समझौता किसी अन्य प्रक्रिया के तहत वार्ता करने या सुनवाई करने की अनुमति नहीं देता। समझौते में संबद्ध पक्षों में वार्ता के अतिरिक्त किसी अन्य की मध्यस्थता का भी प्रविधान नहीं है। मामले में जब तटस्थ विशेषज्ञ से समीक्षा कराई गई, तब समानांतर सुनवाई की प्रक्रिया शुरू करने का क्या औचित्य था।