नई दिल्ली, एजेंसी : प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि विधायिका अदालत के फैसले में खामी को दूर करने के लिए नया कानून बना सकती है, लेकिन उसे सीधे खारिज नहीं कर सकती है।
एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायाधीश इस पर गौर नहीं करते हैं कि जब वह मुकदमों का फैसला करेंगे तो समाज कैसी प्रतिक्रिया देगा। सरकार की विभिन्न शाखाओं और न्यायपालिका में यही फर्क है।
विधायिका खामी को दूर करने के लिए नया कानून बना सकती है- CJI
सीजेआई ने कहा, ‘एक विभाजनकारी रेखा यह है कि अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है और क्या नहीं कर सकती है। अगर किसी विशेष मुद्दे पर फैसला दिया जाता है और इसमें कानून में खामी का जिक्र किया जाता है तो विधायिका उस खामी को दूर करने के लिए नया कानून बना सकती है। विधायिका यह नहीं कह सकती कि फैसला गलत है और इसलिए हम फैसले को खारिज करते हैं।’
उन्होंने कहा कि विधायिका किसी भी अदालत के फैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती है। न्यायाधीश मुकदमों का फैसला करते समय संवैधानिक नैतिकता का अनुसरण करते हैं न कि सार्वजनिक नैतिकता का। यह तथ्य कि न्यायाधीश निर्वाचित नहीं होते हैं, यह हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी ताकत है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट एक साल में 80 मुकदमों पर फैसला सुनाता है। हमने इस साल कम-से-कम 72 हजार मुकदमों का निस्तारण किया है और अभी दो महीना बाकी है। इससे हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्यों में अंतर समझ में आता है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्त होना चाहिए, ताकि आने वाली पीढि़यां अतीत की गलतियों को उजागर करे और समाज के विकास के लिए कानूनी सिद्धांतों में बदलाव कर सकें।