अलीगढ़, वैशाली अरोड़ा : दवाएं भी तभी मरीज को ठीक कर पातीं हैं, जब मरीज का हौंसला मजबूत हो और जीने की इच्छाशक्ति हो। अस्पताल में मरीज के भर्ती होने के बाद जब मरीज की हिम्मत जवाब देने लग जाती है, तब नर्स ही जीने का हौसला देतीं हैं। जीने की इच्छाशक्ति को जगाती हैं। मरीज के पास रहकर उसकी मनोदशा को पढ़ती हैं और उसी के मुताबिक स्वास्थ्य लाभ लेने में मदद करतीं हैं।
कोरोना महामारी के समय में भी नर्सें अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों की सेवा में लगी रहीं। जब संक्रमित से अपने लोगो ने ही मुंह मोड़ लिया था, तब इन नर्सों नें ही मरीज का हाथ पकड़ा था। विश्व नर्स दिवस पर नर्सों ने कोरोना काल के दौर के मुश्किल पलों को साझा किया।
बच्चो की चिंता छोड़ मरीजों का बढ़ाया हौसला
दीनदयाल संयुक्त चिकित्सालय की नर्स आराधना सिंह कहती हैं कि उनकी ड्यूटी कोरोना के समय आईसीयू में रही थी। 24 घंटे वह मरीजों की सेवा करती रहती थी । आईसीयू में उस दौरान 36 मरीजों का जिम्मा रहता था। कोरोना काल में अपनों कि चिंता कम लगती थी। आराधना ने कहा कि उन्होने अपने 15 वर्ष के कार्यकाल में पहली बार ऐसी स्थित देखी थी। आराधना को कोरोना के समय उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया गया है।
निजी संस्थान में नर्स के पद पर कार्यरत काजल सिंह कोरोना काल के समय जिला अस्पताल में तैनात थीं। उन्होने बताया कि जैसे ही घर में पता चला की बेटी की कोरोना के मरीजों की देखभाल में ड्यूटी लगी है उनको चिंता हुई। लेकिन जब काजल ने उन्हें समझाया तब परिजनों नें उनका साथ दिया। काजल ने कहा कि संक्रमितों से भरे अस्पताल में खुद को सुरक्षित रखना बेहद मुश्किल था, फिर भी उन्होने खुद को सुरक्षित रख मरीजों की देखभाल बखूबी किया । उन्होने बताया पहली बार ड्यूटी लगने पर उनको चिंता हुई लेकिन सुरक्षा के व्यापक इंतजाम होने से वह चिंता दूर हुई।
परिवार की चिंता छोड़ मरीजों को दिया था हौंसला
मोहनलाल गौतम महिला चिकित्सालय में तैनात एलिस मोनिका कहती हैं कि कोरोना काल के खौफनाक मंजर को वह आज तक नहीं भुला पायी हैं। उन्होने कहा कि सिर्फ एक नर्स ही थीं जो उस समय कोरोना संक्रमितों के साथ रहकर उनका हौसला बढ़ाती थीं। एलिस मोनिका ने बताया संक्रमित होने के डर से कुछ दिन परिवार से भी अलग रहना पड़ा था। उन्होने कहा कि कोरोना के समय संक्रमितों के परिवार बन कर नर्सों ने ही उनको स्वस्थ्य किया था।