नई दिल्ली, स्पोर्ट्स डेस्क : टेम्बा बावुमा से कभी मत पूछिएगा कि नाम में क्या है ? कभी उनके बल्लेबाजी औसत पर तंज कसा गया, कभी उनके कद को लेकर तो कभी उनकी रंग पर। लेकिन बावुमा ने हर आलोचना का जवाब अपने खेल और नेतृत्व से दिया। आज वही बावुमा दक्षिण अफ्रीका के पहले विश्व टेस्ट चैंपियन कप्तान बनकर ऐतिहासिक लॉर्ड्स की बालकनी में खड़े हैं, हाथ में गोल्डन मेस, आंखों में आंसू और सीने में गर्व।
आज तक दक्षिण अफ्रीका का कोई कप्तान नहीं कर पाया था, वो बावुमा ने कर दिखाया है। ‘टेम्बा’, यह नाम उनकी दादी ने रखा था, जिसका जुलू भाषा में मतलब होता है ‘उम्मीद’। और उम्मीद ही थी जो उन्हें लांगा (केपटाउन में एक जगह) की सकरी गलियों से लॉर्ड्स के मैदान तक लाई। बावुमा न केवल दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत कप्तान बने जिन्होंने कई वैश्विक खिताब जीता, बल्कि टेम्बा बावुमा अपने देश के क्रिकेट इतिहास को नई दिशा दिया ।
ढक लिया चेहरा
जब काइल वेरने ने विजयी शॉट लगाया तो बावुमा ने अपना चेहरा ढक लिया, शायद वह अपने आंसू छुपाना चाहते थे। उनके नेतृत्व में मिली यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि उन लाखों अश्वेत दक्षिण अफ्रीकियों की जीत है, जिनके संघर्ष की आवाज आज लॉर्ड्स में गूंज रही थी। बावुमा ने एक बार बोले थे कि लांगा की मेरी सकरी गली में एक हिस्सा ऐसा था जिसे हम लॉर्ड्स कहते थे, क्योंकि वो सबसे साफ और सुंदर था। आज उसी गली का वह बच्चा लॉर्ड्स में इतिहास लिख गया है।
कोच ने की प्रशंसा
साउथ अफ्रीकी टीम के कोच शुक्री कोनराड ने भी माना कि बावुमा ने हैमस्ट्रिंग चोट के बावजूद मैदान नहीं छोड़ा और अहम रन बनाए। वो मैदान से बाहर नहीं जाना चाहता था, उसने टीम के लिए उदाहरण पेश किया। बावुमा जब कप्तान बने थे तो उनका बल्लेबाजी औसत 30 के आसपास था। लेकिन आज वो 57+ के औसत से बल्लेबाजी कर रहे हैं। यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, यह उस मानसिक ताकत और धैर्य का प्रमाण है जिसने उन्हें आलोचनाओं से आगे बढ़ाया।
वह न केवल मैदान पर कप्तान हैं, बल्कि समावेशिता और सामाजिक एकता के प्रतीक बन चुके हैं। ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ पर मतभेद के बावजूद उन्होंने कभी किसी साथी से दूरी नहीं बनाई। टेम्बा बावुमा के शब्दों में, ‘हम सब एक साथ बेहतर बनने की प्रयास कर रहे हैं। यही सबसे बड़ी बात है। आज बावुमा सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण अफ्रीका की ‘उम्मीद’ हैं।