धार, संवाददाता : हाईकोर्ट के आदेश के बाद मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित ऐतिहासिक परमारकालीन भोजशाला में आज सुबह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) की टीम वाराणसी में ज्ञानवापी की तरह सर्वे शुरू हो गया है। सर्वे को लेकर एएसआइ, जिला प्रशासन और पुलिस ने तैयारियों को पूरा कर लिया है। परिसर के आसपास भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है। हिंदू फ्रंट फार जस्टिस ने भोजशाला को माता वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर बताते हुए वहां हिंदू समाज को पूजा का अधिकार देने की मांग की याचिका दायर की थी।
बहुत पुराना है विवाद
भोजशाला विवाद बहुत पुराना है। हिंदुओं पक्ष का मानना है कि यह सरस्वती देवी का मंदिर है। सदियों पहले मुसलमानों ने इसकी पवित्रता भंग करके मौलाना कमालुद्दीन की मजार का निर्माण किया गया था। भोजशाला में आज भी देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए देखे जा सकते है। अंग्रेज अधिकारी यहाँ पर लगी वाग्देवी की मूर्ति को लंदन ले गए थे। संगठन की ओर से एडवोकेट हरिशंकर जैन और एडवोकेट विष्णुशंकर जैन ने कोर्ट में बताया था कि पूर्व में भी जो सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि भोजशाला वाग्देवी का मंदिर है, इसके सिवा कुछ नहीं।
हिंदुओं को यहां पूजा करने का पूरा अधिकार है और पूजा करने से भोजशाला के धार्मिक चरित्र में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं होगा। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने ASI को वैज्ञानिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। कोर्ट ने ASI टीम को छह सप्ताह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। आदेश के 11 दिन बाद सर्वे शुरू के कारण अब ASI को सर्वे पूरा करने के लिए सिर्फ साढ़े चार सप्ताह मिलेंगे। ASI को 29 अप्रैल को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।
हर चल-अचल वस्तु की होगी जांच
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि अगर एएसआइ को ऐसा लगता है कि वास्तविकता तक पहुंचने के लिए उसे कुछ अन्य जांच करनी है तो वह परिसर में मौजूद वस्तुओं को नुकसान पहुंचाए बिना जांच कर सकता है। एएसआइ भोजशाला स्थित हर चल-अचल वस्तु, दीवारें, खंभों, फर्श की जांच करेगा। जांच में अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग होगा। परिसर में स्थित हर वस्तु की कार्बन डेटिंग पद्धति से जांच कर यह पता लगाया जाएगा कि वह कितनी पुरानी है।
हाईकोर्ट ने भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वे जीपीआर (ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार) व जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) से करने को कहा है। जीपीआर की विशेषता यह है कि इसमें लगे रडार से जमीन में छुपी वस्तुओं के विभिन्न स्तरों, रेखाओं और संरचनाओं का माप लेता है।
वर्ष 1902-03 में हुए सर्वे में मिले थे विष्णु और कमल के चिह्न
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से एडवोकेट हिमांशु जोशी ने कोर्ट को जानकारी देते बताया था कि वर्ष 1902-03 में पुरातत्व विभाग भोजशाला का सर्वे कर चुका है। फोटोग्राफ के साथ रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत है। फोटोग्राफ में भगवान विष्णु और कमल चिह्न परिसर में स्पष्ट दिख रहे हैं। इसलिए नये सर्वे की कोई आवश्यकता नहीं है।