Uttarkashi : धराली में 500 करोड़ से ज्‍यादा लागत के भवन जमींदोज

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उत्तरकाशी, संवाददाता : धराली में अब क्या ? यह सवाल जितना धराली के आपदा प्रभावितों के मन में हथौड़े की तरह चोट मार रहा है, तो यही सवाल आपदा राहत में जुटी सरकारी मशीनरी को भी कचोट रहा है। चौतरफा पसरा मलबा, जमींदोज हो चुके सैकड़ों भवन और तबाह हो चुकी संरचनाएं भी चीख चीखकर पूछ रही हैं कि जिंदगी के निशान मिटने के बाद क्या कभी धराली फिर उठ खड़ी होगी ?

इस समय सरकारी मशीनरी आपदाग्रस्त क्षेत्र में प्रभावितों के आंसू पोंछने में लगी है और जिंदगी के बिखरे तिनके समेटने के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, इन सबके बीच यह सवाल बार बार उठ खड़ा होता है कि जो लोग धराली की जलप्रलय में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं, उनके बिखरे सपनों में क्या खुशहाली के रंग भर पाएंगे।

विभिन्न सरकारी एजेंसियों के प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक ही धराली क्षेत्र में 500 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने धराली की खूबसूरती से आकर्षित होकर यहां पर्यटन की असीम संभावनाओं के बीच जिंदगी का तानाबाना जोड़ा था। घरों को होम स्टे में तब्दील किया गया था, सेब के बगीचों के बीच होटल और रिसार्ट खड़े किए गए थे। लेकिन, नियति ने ऐसा क्रूर मजाक किया कि सब कुछ एक झटके में उनकी ही आंखों के समाने तबाह हो गया।

भूपेंद्र ने अपने साथियों से मिलकर सुखद भविष्य की नींव डाली थी

धराली निवासी भूपेंद्र ने अपने साथियों से मिलकर सुखद भविष्य की नींव डाली थी। सेब के बगीचों के बीच करीब तीन करोड़ रुपए की लागत से रिसॉर्ट का निर्माण किया था। आज उनकी आंखों में भविष्य के सुखद सपने की जगह सूनेपन ने ले ली है। जहां नजर दौड़ाते हैं, सिर्फ मलबे के निशान नजर आते हैं। रजनीश पंवार का होमस्टे, घर और बगीचा भी जलप्रलय की भेंट चढ़ गया। सिर ढकने तक के लिए जगह नहीं बची।

जय भवान का धराली में 50 कमरों का आलीशान होटल था। जिसके दरवाजे बिना किसी तकादे के वीआइपी से लेकर आमजन तक के लिए हमेशा खुले रहते थे। इस ठौर की सुलभ तलाश भी अब गुम हो चुकी है।

तमाम व्यक्तियों ने आपदा में गंवाया अपना सब कुछ
भूपेंद्र, रजनीश पंवार और जय भवान की तरह ही धराली के तमाम व्यक्तियों ने आपदा में अपना सब कुछ गंवा दिया। बेशक जिंदगी आगे बढ़ते रहने का नाम है और देर सबेर आपदा के जख्म भर भी जाएंगे। फिर भी यह सवाल अपनी जगह कायम है कि वह समय कब आएगा? आएगा तो क्या धराली फिर उसी ताकत के साथ उठ खड़ी होगी?

सवाल यह भी कि क्या आपदा से प्रभावित और अपना सब कुछ गंवा चुके लोग दोबारा उसी क्षमता के साथ अपने बिखरे तिनकों को समेट पाने की सामर्थ्य रख पाएंगे? क्योंकि, इस समय आपदा प्रभावित इन अंतहीन सवालों से घिरे हैं और फिलहाल उनके पास न तो ठोस जवाब हैं और न ही आगे बढ़ने की स्पष्ट राह।

इतना जरूर है कि धराली के आपदा प्रभावित अपनी माटी से दोबारा जुड़ने और उसे चूमने की हसरत जरूर रखते हैं। तमाम ज़ख्मों के बाद भी माटी से जुड़ने की यही चाह शायद धराली की जमीन को नया आधार दे पाए।

सेब का सालाना टर्नओवर था 20 करोड़

अपनों की कमी और आंखों की नमी के बीच आपदा प्रभावित उस खुशहाल अतीत को भी याद करते हैं, जब यहां हर एक व्यक्ति खुशहाल था और भविष्य के प्रति बेहद आशावान भी। पर्यटन के अलावा यहां सेब उत्पादन भी बेहतर आजीविका का जरिया था। धराली के बागवान सालाना करीब 20 करोड़ रुपए का कारोबार सेब से करते थे। लेकिन, सेब से लकदक रहने वाले बाग पूरी तरह तबाह हो चुके हैं।

210 करोड़ के भवन क्षतिग्रस्त
विभिन्न निर्माण एजेंसियों और विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार जिस एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में मलबा पसरा है, वहां 200 भवनों की क्षति के अनुसार औसतन 210 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। जिसमें घर, दुकान, होटल, रिसॉर्ट और होमस्टे आदि शामिल हैं।

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