धार, संवाददाता : Eco-Sensitive Zone : सरदारपुर स्थित खरमोर अभ्यारण्य के संरक्षण और उसके इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) को लेकर एक गंभीर विसंगति सामने आई है। सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी ने इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए केंद्र और राज्य सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
42 साल बाद बदली अभ्यारण्य की सीमा, मुक्त हुए 14 गांव
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश शासन के वन विभाग ने दुर्लभ खरमोर पक्षी के संरक्षण के लिए 4 जून 1983 को सरदारपुर खरमोर अभ्यारण्य की स्थापना की थी। इसमें 14 गांवों की 348.12 वर्ग किमी निजी और शासकीय भूमि शामिल थी। लेकिन 42 साल और एक महीने बाद, 3 जुलाई 2025 को, अभ्यारण्य की सीमाओं में बदलाव करते हुए इन 14 ग्राम पंचायतों को अभ्यारण्य से मुक्त कर दिया गया। इससे अभ्यारण्य का वास्तविक क्षेत्रफल कम हो गया और इन गांवों के किसानों को अपनी निजी भूमि का क्रय-विक्रय, पंजीयन और नामांतरण का अधिकार मिल सका।
यहाँ विवाद की मुख्य जड़ यह है कि अभ्यारण्य का दायरा घटने के बावजूद, इसके चारों ओर लागू इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) की पुरानी अधिसूचना अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में लागू किया गया 250 मीटर का ईएसजेड अब भी उन्हीं 14 गांवों पर लागू माना जा रहा है, जो अब अभ्यारण्य का हिस्सा नहीं हैं।
केंद्र के निर्देश के बावजूद नहीं हुई कार्रवाई
सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आईएसईसी डिवीजन ने बताया कि ईएसजेड की पुरानी अधिसूचना ही प्रभावी है और राज्य सरकार की ओर से इसको संशोधित करने का कोई प्रस्ताव अभी तक नहीं आया है। यह स्थिति तब है जबकि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की सिफारिशों पर पर्यावरण मंत्रालय ने 11 अगस्त 2023 को ही मध्य प्रदेश सरकार को स्पष्ट निर्देश जारी किए थे। इन निर्देशों में कहा गया था कि अभ्यारण्य की सीमा बदलने के तुरंत बाद राज्य सरकार ईएसजेड अधिसूचना में संशोधन का प्रस्ताव जमा करेगी। हैरानी की बात यह है कि इस निर्देश के पांच महीने बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार ने कोई प्रस्ताव केंद्र को नहीं भेजा है।
भ्रम और अनिश्चितता की स्थिति – भंडारी
इस विसंगति पर बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी ने कहा, “यह स्थिति एक स्पष्ट विसंगति पैदा कर रही है। जहां अभयारण्य का क्षेत्रफल आधिकारिक तौर पर कम हो गया है, वहीं आसपास के क्षेत्रों पर लागू होने वाले संरक्षण संबंधी प्रतिबंध अभी भी पुराने मानचित्र के आधार पर चल रहे हैं, जिससे भ्रम और अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।”
संरक्षण और विकास के बीच संतुलन जरूरी
श्री भंडारी ने जोर देकर कहा, “खरमोर अभ्यारण्य के संरक्षण के नाम पर आम जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अतीत में, किसानों और स्वयं पक्षियों के साथ भी एक तरह का अन्याय हुआ है। इको-सेंसिटिव जोन का निर्धारण एक संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ होना चाहिए, जो अभयारण्य के संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की आजीविका और विकास की जरूरतों का भी ध्यान रखे।” उन्होंने सुझाव दिया कि स्थानीय समुदायों को इको-टूरिज्म, जैविक खेती और हस्तशिल्प जैसे वैकल्पिक रोजगार के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ताकि संरक्षण और विकास के बीच टकराव की स्थिति न बने।
इस पूरे मामले में सबसे तत्काल आवश्यकता राज्य सरकार द्वारा केंद्र को एक संशोधित इको-सेंसिटिव जोन प्रस्ताव शीघ्रता से भेजे जाने की है, ताकि इस कानूनी और प्रशासनिक उलझन को दूर किया जा सके और स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा करते हुए वास्तविक संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
