वाराणसी, संवाददाता : काशी के क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल ने भगत सिंह को देशसेवा के लिए विवाह न करने की सलाह दी थी। वहीं, राजगुरु महाराष्ट्र में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस आ गए थे।
बनारस पूर्वांचल के क्रांतिकारियों का था गढ़
आज से 100 वर्ष पहले आजादी का आंदोलन उफान पर था और बनारस पूर्वांचल के क्रांतिकारियों का गढ़ था। वर्ष 1922 में चौराचौरी कांड के बाद महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद युवाओं को निराशा हुई। इसी के चलते 1924 में भगत सिंह ने कानपुर में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) जॉइन किया। बनारस के क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल भी इसी संगठन के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियों को धार दे रहे थे। दोनों की एक-दूसरे से मुलाकात हुई और भगत सिंह का बनारस आना-जाना शुरू हो गया।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने जयदेव कपूर को जब बनारस में संगठन मजबूत करने के लिए भेजा तो वे और भगत सिंह कुछ समय तक बीएचयू के लिंबडी हॉस्टल में भी ठहरे थे। जब भगत सिंह पर घर से विवाह करने का दबाव पड़ा तो उन्होंने पत्र लिखकर शचींद्र से सलाह मांगी। इस पर शचींद्र ने जवाब दिया कि विवाह करना या न करना तुम्हारी इच्छा है। लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि शादी के बाद पारिवारिक बंधन इतना जकड़ लेगा कि देशभक्ति से बहुत दूर हो जाओगे।
राजगुरु संस्कृत पढ़ने के लिए आये थे वाराणसी
राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे के खेड़ा गांव में हुआ था। वे स्कूली पढ़ाई करने के बाद संस्कृत पढ़ने के लिए वाराणसी आ गए। बीएचयू की इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रो. डॉ. अनुराधा प्रसाद ने बताया कि पंचगंगा घाट स्थित सांग्वेद संस्कृत महाविद्यालय में उन्होंने पढ़ाई की। महाविद्यालय के डॉक्यूमेंट में यह विवरण दर्ज है। इसके साथ ही परिसर में उनकी तस्वीर भी लगी है। यहीं पर उनकी मुलाकात भगत सिंह, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद से हुई। चंद्रशेखर आजाद से ही प्रभावित होकर वे हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में शामिल हुए।
वहीं, सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। वर्ष 1921 में उनकी मुलाकात नेशनल कॉलेज में भगत सिंह से हुई थी। वहीं से उनकी दोस्ती मजबूत हुई। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियों को लेकर बनारस के बालाजी घाट, रामकुंड, काशी विद्यापीठ, बेनिया अखाड़े आदि स्थानों पर अक्सर इनकी बैठकें हुआ करती थीं।
इसलिए मनाया जाता है शहीद दिवस
23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को नेशनल असेंबली पर बम फेंकने के बाद गिरफ्तारी दी थी। वहीं, राजगुरु और सुखदेव अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित थे।