नई दिल्ली, न्यूज़ डेस्क : भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) तेजी से पैर पसार रहे हैं। जीसीसी युवाओं के लिए बड़ा मौका लेकर आए हैं। अनेक वैश्विक कंपनियां भारतीय प्रतिभाओं को रखकर कम लागत का लाभ उठा रही हैं। रिपोर्ट्स इस बात की तसदीक करती है कि 2030 तक लगभग 3 मिलियन (30 लाख) कर्मचारियों को इसमें रोजगार मिल सकता है। फर्स्ट मेरिडिन के अनुसार, इस वृद्धि से फ्रेशर्स के लिए लगभग 4 लाख नई नौकरियों के मौके बनेंगे। भारत में पिछले कुछ समय में जिस तरह जीसीसी का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का भारतीय वर्कफोर्स में भरोसा बढ़ा है, उसे देखकर लगता है कि भविष्य में भी जीसीसी की ग्रोथ स्टोरी में भाग लेने के लिए भारतीयों को अनेक अवसर मिलेंगे।
भारत विश्व की प्रमुख पसंद बन रहा है
जीसीसी की इस बढ़ोतरी की वजह भारत में मौजूद टैलेंट, उच्च डिजिटल साक्षरता, कम और आईटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, और डेटा इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ लोगों की भरमार के कारण संभव हो पा रहा है। भारत GCCs के लिए प्रमुख गंतव्य बनता जा रहा है, और यह बाजार 2030 तक 110 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। जीसीसी अब केवल बैक-एंड सपोर्ट केंद्र नहीं रह गए हैं। ये अब नवाचार, प्रोडक्ट डेवलपमेंट और अनुसंधान के मुख्य केंद्र बनते जा रहे हैं, खासकर अत्याधुनिक तकनीकों में। इस कारण भारत विश्व की प्रमुख पसंद बन रहा है।
जीसीसी में होंगे पर्याप्त अवसर
एक्सपर्ट मानते हैं कि तीन-चार साल बाद जो छात्र ग्रेजुएट बन कर निकलेंगे उनके पास जीसीसी में पर्याप्त अवसर होंगे। बस वे इंडस्ट्री के ट्रेंड के हिसाब से स्किल हासिल करें। जीसीसी लगातार नई टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं। वे एआई, मशीन लर्निंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सिक्योरिटी को अपने ऑपरेशन में शामिल करने में भी अग्रणी होंगे। वर्कफोर्स में शामिल होने वाले छात्र अगर इन अधिक डिमांड वाले क्षेत्रों पर फोकस करें तो उनकी एंप्लॉयबिलिटी बढ़ जाएगी। रिपोर्ट बताती है कि भारत में GCCs का विस्तार तो हो ही रहा है, लेकिन अब ये केवल सहयोगी या बैकएंड यूनिट नहीं रह गए हैं। ये अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अपनाने में अग्रणी हैं, रणनीतिक निर्णयों में भूमिका निभा रहे हैं और नवाचार के वैश्विक केंद्र बनते जा रहे हैं।
2026 तक जीसीसी में लगभग 1.5 लाख नौकरियों के सृजन की उम्मीद है, जिनमें से एक लाख से अधिक फ्रेशर्स के लिए होंगी। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में जीसीसी में महिलाओं की भागीदारी 40% है, और यह आंकड़ा 3-5% तक बढ़ने की संभावना है, क्योंकि कंपनियां विविधता, समानता और समावेशन को प्राथमिकता दे रही हैं।
जीसीसी में दो तरह की स्किल की डिमांड
शारदा यूनिवर्सिटी के स्किल और करियर सर्विसेज के डायरेक्टर धीरज शर्मा कहते हैं कि भारत में एक बड़ा, प्रशिक्षित और अंग्रेज़ी बोलने वाला कार्यबल उपलब्ध है, विशेषकर स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) क्षेत्रों में। एआई, मशीन लर्निंग और डेटा इंजीनियरिंग जैसी उभरती तकनीकों में प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स की भरमार है जो अनुकूलन और बदलाव के प्रति काफी लचीले हैं।
जीसीसी में दो तरह की स्किल की डिमांड है। नए जीसीसी में सामान्य स्किल वालों की मांग है। इनमें प्रोसेस, टेक्नोलॉजी आदि शामिल हैं। पुरानी बड़ी कंपनियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, प्लेटफॉर्म, साइबर सिक्योरिटी आदि के स्पेशलिस्ट को लिया जा रहा है। पहले बीपीओ जॉब में हजारों की संख्या में लोग रखे जाते थे जो पे-रोल प्रोसेसिंग, बिलिंग आदि के काम करते थे। अब उनके भीतर भी टेक्नोलॉजी का समावेश हो रहा है। इसलिए सब कुछ मिक्स हो रहा है।
विभावंगल अनुकूलकारा प्रा. लि. के संस्थापक व प्रबंध निदेशक सिद्धार्थ मौर्य कहते हैं कि ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) में स्किल डिमांड लगातार बदल रही है। आज सिर्फ AI, क्लाउड या डेटा इंजीनियरिंग जानना काफी नहीं, बल्कि कंपनियां ऐसे प्रोफेशनल्स चाहती हैं जो इन तकनीकों को सही तरीके से लागू भी कर सकें। फुल स्टैक डेवलपमेंट, साइबर सुरक्षा, आरपीए और डेवऑप्स जैसे फील्ड्स में एक्सपर्ट्स की मांग के साथ-साथ सेक्टर स्पेसिफिक स्किल्सॉ जैसे फिनटेक या हेल्थकेयर एनालिटिक्स की डिमांड भी तेज़ी से बढ़ी है।