Cloud Burst : हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की क्या है वजह ? जानें इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन क्यों

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नई दिल्ली,ऑनलाइन डेस्क : अगर किसी पहाड़ी स्थान पर एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से जयादा वर्षा होती है तो इसे बादल फटना कहते हैं। बड़ी मात्रा में पानी का गिरना न केवल संपत्तियो को जयादा नुकसान पहुंचाता है बल्कि इंसानी की जान पर भी भारी पड़ता है।

ज्यादा वर्षा के कारण हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में तबाही मची हुई है। वर्षा के साथ-साथ बादल फटने की घटनाएं भयानक तबाही मचाये हुए हैं। इसके अतरिक्त भूस्खलन से पहाड़ टूट रहे हैं, जिसके कारण मंडी, शिमला, कुल्लू, जिला सिरमौर और अन्य क्षेत्रों में हालात काफी बिगड़े हुए हैं। यही कारण है कि बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए स्कूल-कॉलेज बंद हैं।

प्रदेश में इस हफ्ते बादल फटने और उसके कारण हुए भूस्खलन के चलते 60 से अधिक लोगो की मृत्यु हो गयी हैं। शिमला के समरहिल में भूस्खलन के चलते जमींदोज हुए शिव बाड़ी मंदिर के मलबे से पांच और शव निकाले गए हैं। इस घटना में अब मृतकों की संख्या 13 पहुंच गई है। अभी तलाशी अभियान जारी है। इस बीच हमें जानना जरूरी है कि आखिर बादल फटना कहते किसे हैं? इसके पीछे कारण क्या है? इनका अनुमान लगाना क्यों कठिन होता है ?

किसे कहते है बदल फटना ?

अगर किसी पहाड़ी स्थान पर एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होती है तो इसे बादल फटना कहते हैं। भारी मात्रा में पानी का गिराव न केवल संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाता है बल्कि इंसानों की जान पर भी भारी पड़ता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के निदेशक मृत्युंजय महापात्रा कहते हैं कि बादल फटना एक बहुत छोटे स्तर की घटना है और यह अधिकतर हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रो या पश्चिमी घाटों में होती है। महापात्रा के मुताबिक जब मानसून की गर्म हवाएं ठंडी हवाओं से मिलती हैं तो इससे बड़े बादल बनते हैं। ऐसा स्थलाकृति (टोपोग्राफी) या भौगोलिक कारकों के कारण भी होता है।

मौसम विज्ञान और जलवायु विशेषज्ञ महेश पलवत के अनुसार, ऐसे बादलों को क्युमुलोनिंबस कहते हैं और ये ऊंचाई में 13-14 किलोमीटर तक खिंच सकते हैं। अगर ये बादल किसी इलाके के ऊपर फंस जाते हैं या वहां पर हवा नहीं होती है तो ये वहां बरस जाते हैं।

सामान्य तौर पर बादलों के फटने से मूसलाधार से भी ज्यादा तेज बारिश होती है। इस दौरान क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। अमूमन बादल फटने की घटना पृथ्वी से करीब 15 किलोमीटर के ऊंचाई पर होती है और इस दौरान लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से बारिश होती है। बारिश इतनी तेज होती है कि प्रभावित क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं।

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