वाराणसी, संवाददाता : जिले के अनाथालयों से पिछले छह महीने में 12 बच्चों को गोद दिया गया है। इनमें पांच लड़कियां शामिल हैं। दो बच्चों को विदेशी दंपतियों ने अपनाया है। 14 महीने की बच्ची को सिंगापुर के भारतीय मूल के दंपती ने गोद लिया है। इसी तरह दो साल के दिव्यांग बच्चे को अमेरिका के दंपती ने गोद लिया है।
किसी भी बच्चे को गोद लेने के लिए सबसे पहले कारा की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होता है। इसमें आवेदनकर्ता का बैकग्राउंड देखा जाता है। प्रतिमाह वेतन सहित अन्य जानकारियों का सत्यापन किया जाता है। दंपती की आर्थिक स्थिति, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की जांच की जाती है।
सत्यापन के बाद उन्हें उनके शहर से हजारों किलोमीटर दूर स्थित प्रोबेशन कार्यालय भेजा जाता है। गोद लेने के लिए भारतीय आवेदकों को 42 हजार और विदेशी आवेदकों को 4.5 लाख रुपये की फीस जमा करनी होती है। इस राशि का आधा हिस्सा बच्चों की देखभाल करने वाले अनाथालयों और बाल कल्याण संस्थाओं को दिया जाता है।
दिव्यांगों को आसानी से गोद लेते हैं विदेशी
अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय दंपतियों में लड़कों को गोद लेने की चाह ज्यादा होती है। खासकर ऐसे बच्चे जो गोरे हों और उनमें कोई शारीरिक विकार न हो। वहीं, विदेशियों के लिए ऐसा कोई मापदंड नहीं होता। वे दिव्यांग बच्चों को भी आसानी से अपना लेते हैं। विदेश में चिकित्सा सुविधाएं इतनी उन्नत हैं कि वे दिव्यांग बच्चों का बेहतर इलाज करा लेते हैं। कारा बच्चों को गोद लेने वाले दंपतियों को उनके घर से दूर इसलिए भेजता है ताकि बच्चा बड़ा होने पर अपने असली माता-पिता की तलाश न कर पाए और गोद लेने वाले दंपती को ही अपना माता-पिता समझे।