जयपुर,कन्हैयालाल : भारत की वित्त मंत्री डॉ सीतारमण द्वारा अंतरिम केंद्रीय बजट पेश किया गया जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन सबका साथ को झूठ लता नजर आ रहा है। बजट के विस्तृत अवलोकन में स्पष्ट होता है कि समाज समावेशी विकास और संतान केवल एक आह्वान बनकर रह गया है और सामाजिक स्तर पर यह दलित और आदिवासी समाज के आर्थिक अधिकारों के साथ धोखाधड़ी के समान है।
बजट से निराशा
दलित अधिकार केंद्र के मुख्य कारिकारी हेमंत मीमरोठ ने कहा कि सत्य यह है कि दलित और आदिवासी समुदाय हमेशा से ही बजट की वजह से निराश होते आए हैं और आज भी उनके हाथ निराशा ही लग रही है। आर्थिक अधिकारों तक हमारी पहुंच हर वर्ष चरण हो जाती है। हमें सामाजिक विकास से दूर कर दिया जाता है हालांकि दलित और आदिवासी बजट आवंटन में आती वृद्धि हुई है किंतु वह दलित और आदिवासी समुदाय के सामाजिक आर्थिक न्याय के लिए पर्याप्त है वर्ष 2024 का कुल केंद्रीय बजट 510 से 8780 करोड रुपए हैं, जबकि अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल 1655 98 करोड रुपए आवंटित किया गया है।
अनुसूचित जनजाति के लिए या आवंटन 12 10 23 करोड रुपए हैं इसमें से धनराशि जो सीधे दलितों के कल्याण के लिए होगी वह 44282 करोड रुपए हैं और आदिवासियों के लिए 36212 करोड रुपए हैं। दलित और आदिवासी समाज की तरफ हमारी धारणा को और भी मजबूत करता है कि बजट जिस आर्थिक सुधार के लिए एक रोड मैप के रूप में प्रचारित किया जाता है। वह भारत में दलित और आदिवासी समुदायों की तत्काल आवश्यकताओं और चिंताओ ओं को संबंधित करने में सफल रहा है एवं मौजूदा और समानताओं को यथावत रखता है और सामाजिक न्याय और संबंधित की प्रगति में बाधा डालता है।
दलितों के मुद्दों की उपेक्षा-सतीश कुमार
दलित अधिकार केंद्र के निदेशक सतीश कुमार ने बताया कि केंद्र सरकार जाति के पूरे अध्ययन को बदलकर दलितों के मुद्दों की उपेक्षा करने की कोशिश कर रही है हाल ही में वित्त मंत्री ने कहा है कि हमारे प्रधानमंत्री जातियों में विश्वास करते हैं गरीब युवा महिलाएं और अन्नदाता किसान या न केवल शताब्दियों के संघर्षों को मिटाना है बल्कि समावेशिका के विचार पर एक-एक गांव करने कर एक प्रयास भी है। सरकार के समावेशित के वादों के बावजूद बजट निर्णय लेने वाले निकायों में दलित और आदिवासियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों की रूपरेखा नहीं बताता है।
