अल्मोड़ा – संवाददाता : देश को आजाद हुए 79 वर्ष बीत गए हैं लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सिपाही क्रांतिकारी चिंतामणि ढोंडियाल और उनकी पत्नी राधा देवी का परिवार आज भी बदहाली और उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं।
मल्ला चौकोट (गोलना) निवासी यह दंपती 1930 से 1942 तक देश की आजादी के खातिर अनेक आंदोलनों में शामिल रहे। कई बार जेल गए और ब्रिटिश सरकार की कठोर यातनाएं सही। क्रांतिकारी राधा देवी ने तो गर्भावस्था के दौरान भी जेल की यातना झेली और वहीं एक बच्चे को भी जन्म दिया। इनकी बहादुरी के लिए चंद्रमणि और राधा देवी को 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र देकर सम्मानित भी किया गया लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज उनका परिवार गरीबी में जीवन बिता रहा है।
चिंतामणि और राधा देवी के देहांत के बाद पुत्र नारायण दत्त वापस अपने पैतृक गांव गोलना आकर रहने लगे। जहां खेती और मेहनत मजदूरी कर वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे है। 70 वर्ष की आयु में नारायण दत्त की मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु के बाद अब परिवार के लिए चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं। परिवार में उनकी पत्नी सहित कुल नौ सदस्य हैं। उनका बड़ा बेटा दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता है और छोटा बेटा पेशे से दर्जी का काम करता है लेकिन सरकार आजादी के सच्चे सिपाहियों की सुध तक नहीं ले रही है। ऐसे में उनका परिवार को दो जून की रोटी कमाने की काफी संघर्ष करना पड़ रहा है।