वाराणसी, संवाददाता : आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की सीमा के बीच बसे शेषाचलम जंगल की तरह लाल चंदन अब पूर्वांचल की नई पहचान बनेगा। पहली खेप में मऊ से लेकर वाराणसी तक के बीच सफ़ेद व लाल चंदन के साथ दुर्लभ व औषधियुक्त मिलिया-डूबिया व काला शीशम प्रजाति के पौधों के जंगल तैयार करे जाएंगे। पूर्वांचल से गायब हो चुके दुर्लभ व औषधियुक्त पौधों को संरक्षित करने का जिम्मा वन वर्धिनिकी विन्ध्य क्षेत्र ने उठाया है।
इसके लिए विभाग ने लखनऊ के एक निजी शोध संस्थान से बीज की खरीददारी भी कर लिया है। चारों प्रजाति के विलुप्त हो गए पेड़ों के लगभग 10 हजार पौधे उगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।यदि मौसम अनुकूल रहा तो फरवरी के प्रथम हफ्ते में इन बीजों को बोया जाएगा। इसके लिए मऊ जिले में नर्सरी तैयार कर ली गई है। बोने के लगभग तीन माह में इन बीजों से पौधे उगने लगेंगे। इसके बाद इसे वाराणसी के पिंडरा, रोहनिया और मऊ स्थित वन देवी जंगल में लगाया जाएगा।
वन वर्धिनिकी विन्ध्य क्षेत्र से जुड़े दिनेश कुमार चौहान ने कहा कि चंदन के लिए जरूरी जलवायु पूर्वांचल में मौजूद है। वन विभाग के शोध में यह क्षेत्र चंदन के जंगल के लिए मुफीद पाया गया है। यहां की चिकनी उपजाऊ मिट्टी पर हर वर्ष होने वाली 400 से 700 मिलीमीटर वर्षा और 10 से 35 डिग्री का तापमान, इन पौधों के विकास में अहम योगदान देगा।
8 से 10 सालो में परिपक्व होंगे चंदन के पेड़
चंदन एक परोपजीवी पेड़ है, 18-20 मीटर जिसकी ऊंचाई होती है। आयु बढ़ने के साथ उसके तनो और जड़ों की लकड़ी में सुगंधित तेल का अंश बढ़ता ही रहता है। इस पेड़ को तैयार होने में 8-12 वर्ष लगते हैं। इसके लिए ढाल और जल सोखने वाली मिट्टी मुफीद होती है।
बजट के न मिलने के कारण में नहीं संरक्षित हो रहे दुर्लभ पौधे
रामनगर स्थित वन वर्धिनिकी विन्ध्य क्षेत्र से 22 जिलों में पौधों की गणना के साथ ही उनके अनुसंधान का कार्य होता है। जबकि इन दिनों कर्मचारियों की कमी के चलते काम अटके हैं। वन वर्धिनिकी के वरिष्ठ सहायक दिनेश कुमार चौहान ने कहा कि यहां से झांसी, चित्रकूट, मिर्जापुर, मऊ, चंदौली, सोनभद्र, वाराणसी, भदोही, आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, बुंदेलखंड सहित कुल 22 जिलों में पौधों को लगाने की जिम्मेदारी है। अभी बजट व कर्मचारियों के होने के कारन में कुछ खास नहीं हो पा रहा है।
सफ़ेद व लाल चंदन के अतिरिक्त मिमिया डूबिया , शीशम, जैसे दुर्लभ व औषधियुक्त विलुप्त हो रहे पौधे के संरक्षण का लक्ष्य है। फरवरी के पहले सप्ताह में बीज बोने की तैयारी है।
- शेष नारायण मिश्र, मुख्य वन संरक्षक, वन वर्धिनिकी विंध्य क्षेत्र