अयोध्या,संवाददाता : समय होगा लगभग एक बजे दोपहर का सिर पर पीली प्लास्टिक वाली टोपी, नारंगी जाली वाली हाफ सदरी पहने कई जोड़े कदम बिना हांफे 20 मिनट तक इस गेट से बाहर आ जा रहे हैं। ये वक्त खाने की छुट्टी का है। मजदूरों की यह लाइन एक नीले कंटेनर वाले लेबर मोहल्ले में जाकर खत्म होती है। बाहर कुछ चार-छह ठेलों पर रोटियां-पूड़ियां बन रहीं थीं। लखीमपुर से आए पृथ्वीपाल से बात होने लगी। आधी पूड़ी का एक कौर मुंह में कहते हुए कहने लगे, कार्य तो वहां भी बहुत मिल रहा था, पर यह रामनाम का कार्य है।
10-15 तारीख तक काम पूरा करना है
बक्सर के सुनील मिश्रा यहां से पहले हैदराबाद में थे। कहते हैं, कंपनी वहां ज्यादा पैसे देती थी, पर यहां काम करके खुशी होती है। बिहार यूपी के अलावा यहां राजस्थान के सबसे ज्यादा मजदूर हैं। पत्थर वाला काम वही कर रहे हैं। मानसिंह लगभग कॉलर ऊंची करने वाले अंदाज में कहते हैं, काशी में कॉरिडोर का पत्थरवाला दरवाजा भी मैंने ही बनाया था। उनके साथ राजस्थान से आए कई मजदूर तीन शिफ्ट में ड्यूटी कर रहे हैं। नाइट शिफ्ट भी लगने लगी है। विनोद कहते हैं, इंजीनियर साहब बहुत जल्दबाजी कर रहे है आजकल, प्राण प्रतिष्ठा तक सब कार्य पूर्ण जो करना है।
वैसे तो 8000 मजदूरों का रजिस्ट्रेशन राममंदिर के लिए हुआ था। कुछ पहले आए थे, फिर कुछ लौट गए। जो अभी हैं इन्हें भी 10-15 तारीख तक काम पूरा करना है। फिर प्राण प्रतिष्ठा तक काम बंद रहेगा और ये अपने घर छुट्टी चले जाएंगे। इनका सुपरवाइजर कहता है- इन्हें राम के काम में इतना आनंद आ रहा है कि वापस जाना ही नहीं चाहते। काम करते जब तब रामभजन गुनगुनाने लगते हैं।
किसी के गले में रामनाम लिखा पट्टा है, तो किसी के गले में मफलर। पट्टा-मफलर दोनों ही धूल में सने हैं। हाथ में औजार हैं। इलेक्ट्रिसिटी का काम करने वाले दो लोग इसी गेट पर अस्थायी पास का इंतजार कर रहे हैं। आपस में बाते कर रहे हैं। रोज पास लेना होगा, राममंदिर है ये, कोई डिब्बा में बम ले आए तो…।
ये देश के सबसे मजबूत हाथ हैं, जो कुछ गढ़ते है और इनकी मजबूत छाती में दुबकी धड़कने, इन दिनों रामधुन बुदबुदाते हैं।