महाकुंभ नगर, संवाददाता : विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने महाकुंभ के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए गंगा की महिमा, उसकी वैज्ञानिक विशेषताएं और आध्यात्मिक ऊर्जा पर गहन चर्चा की।
गंगा के किनारे अपने आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संबोधन में उन्होंने बताया कि यह महाकुंभ विशेष है क्योंकि यह 144 वर्षों में एक बार होने वाली खगोलीय घटना के अंतर्गत आयोजित हो रहा है। गंगा का महत्व समझाते हुए कहा कि गंगा केवल एक नदी नहीं, यह भारत की आत्मा है। यदि आप गंगा का ध्यान नहीं रखते, तो आप भारत का ध्यान नहीं रखते।
हिमालयन इंस्टीट्यूट में ठहरे सद्गुरु
झूंसी स्थित हिमालयन इंस्टीट्यूट में ठहरे सद्गुरु गुरुवार की शाम गंगा के किनारे श्रद्धालुओं के बीच पहुंचे। गंगा के किनारे सतगुरु ने जब महाकुंभ की व्याख्या शुरू की तो सब उनको सुनने को आतुर हो गए।
कहा- महाकुंभ के दौरान एक महत्वपूर्ण खगोलीय संयोग बन रहा है, जिसमें सात प्रमुख ग्रहों सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति, मंगल आदि का प्रभाव पृथ्वी पर अधिक गहराई से पड़ रहा है।
विशेष रूप से बृहस्पति, जो पृथ्वी से 11 गुना बड़ा है, अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से जल प्रवाह और पर्यावरण को प्रभावित करता है। उन्होंने समझाया कि यह खगोलीय घटना केवल आध्यात्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह संयोग जल की प्राकृतिक संरचना, नदियों के प्रवाह और वातावरण की ऊर्जा को प्रभावित करता है।
गंगा का जल कभी सड़ता नहीं
गंगा जल की अनूठी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1896 में ब्रिटिश जीवाणु वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में यह सिद्ध हुआ कि गंगा जल में बैक्टीरियोफेज होता है, जो हानिकारक बैक्टीरिया और विषाणुओं को नष्ट कर देता है। इसी कारण गंगा का जल कभी सड़ता नहीं और लंबे समय तक शुद्ध बना रहता है।
उन्होंने ऐतिहासिक उदाहरण देते हुए बताया कि मुगल सम्राट अकबर जब लंबे युद्ध अभियानों पर जाता था, तो केवल गंगा जल साथ ले जाता था, क्योंकि यह कभी खराब नहीं होता था और सैनिकों को बीमारियों से बचाए रखता था। प्राचीन काल में भी समुद्री यात्राओं के दौरान लोग 90 से 100 दिनों तक गंगा जल लेकर चलते थे, ताकि वे स्वस्थ रह सकें।
गंगा का पर्यावरणीय महत्व और जलवायु परिवर्तन
सद्गुरु ने चिंता व्यक्त की कि ग्लेशियरों के पिघलने से न केवल जल संकट बढ़ रहा है, बल्कि इससे पुराने वायरस और बैक्टीरिया भी मुक्त हो रहे हैं, जो जल को प्रदूषित कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि भारत की जीवन रेखा है, क्योंकि देश की 33% कृषि भूमि गंगा के किनारे स्थित है।
उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि पिछले 10 वर्षों में गंगा का जल पहले की तुलना में अधिक स्वच्छ हुआ है, लेकिन इसे और बेहतर बनाए रखने के लिए हम सभी को जागरूक होने की आवश्यकता है।
उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि वे गंगा को किसी भी तरह से प्रदूषित न करें, क्योंकि “आपके कर्म ही आपके भविष्य के परिणाम तय करेंगे।” सद्गुरु के प्रेरणादायक शब्दों और गहरी आध्यात्मिक ऊर्जा से महाकुंभ का वातावरण शिवमय हो गया।
जैसे ही उन्होंने “योगी योगी योगेश्वराय” का उच्चारण किया, उपस्थित श्रद्धालु भक्ति में डूब गए। उन्होंने गंगा की पवित्रता, उसकी चिकित्सा शक्ति और पर्यावरणीय महत्व को रेखांकित करते हुए सभी से आह्वान किया कि वे इसे स्वच्छ और संरक्षित रखने का संकल्प लें।