Leh : श्योक टनल के शुरू होने से एलएसी तक वर्षभर निर्बाध पहुंच संभव

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लेह, संवाददाता : leh News :श्योक टनल के शुरू होने से एलएसी तक वर्षभर निर्बाध पहुंच संभव हो गई है, जिससे सेना की रणनीतिक क्षमता और रसद आपूर्ति मजबूत होगी। युद्ध या आपात स्थिति में यह सुरंग सुरक्षित बंकर की तरह भी काम करेगी, जो भारत की रक्षा तैयारियों को और सुदृढ़ बनाता है।

पूर्वी लद्दाख में देश को समर्पित श्योक टनल भारत की सामरिक शक्ति का नया प्रतीक है। इस टनल ने चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) तक पहुंचने के लिए साल भर की राह खोली है। इससे अग्रिम सैन्य चौकियों तक हर मौसम में संपर्क सुनिश्चित बना रहेगा। युद्ध या आपात स्थिति में इस सुरंग को सुरक्षित बंकर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा।

920 मीटर लंबी ये सुरंग दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क पर स्थित है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सात दिसंबर को ही श्योक टनल का लोकार्पण किया है। ये देश के लिए महत्वपूर्ण एवं सामरिक रूप से मील का पत्थर है। यह अत्याधुनिक कट-एंड-कवर संरचना सामान्य सड़क परियोजना से कहीं अधिक है। यह भारतीय सेना के लिए एक दोहरे उद्देश्य वाली सामरिक संपत्ति है।

एलएसी पर भारत की रक्षात्मक लाइन अब और अभेद्य हो गई

बंकर के रूप में इस्तेमाल हो सकने के कारण एलएसी पर भारत की रक्षात्मक लाइन अब और अभेद्य हो गई है। सोमवार को ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट करते समय सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की 1445 ब्रिज कंस्ट्रक्शन कंपनी के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल रविंद्र सिंह मेहला ने श्योक टनल के सामरिक महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ये टनल गलवान घाटी और दौलत बेग ओल्डी सहित पूर्वी लद्दाख में सबसे संवेदनशील अग्रिम क्षेत्रों तक निर्बाध पहुंच प्रदान करेगी। यह क्षेत्र भारतीय सेना की महत्वपूर्ण तैनाती का केंद्र है।

उन्होंने बताया कि टनल से पूरे वर्ष सैनिकों, हथियारों, गोला-बारूद और आवश्यक सामग्री की सुनिश्चित आवाजाही हो सकेगी। आपात स्थितियों में ये बंकर का काम करेगी। इसमें महत्वपूर्ण सैन्य सामग्री का अस्थायी भंडारण संभव होगा। उन्होंने संस ऑफ स्वॉयल पहल के अंतर्गत स्थानीय लद्दाखी समुदायों के श्रमबल और लॉजिस्टिक सहयोग की भूमिका भी सराही।

माइनस 40 डिग्री सेल्सियस में भी नहीं रुकेंगे कदम

श्योक टनल दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क के उस हिस्से से हटकर बनाई गई है जो भूस्खलन और नदी के बहाव से अक्सर बाधित रहता था। इससे कई हफ्तों तक आपूर्ति बाधित रहती थी। अब ये टनल एक पुरानी लॉजिस्टिक कमजोरी को दूर करेगी। बता दें कि इस क्षेत्र में सर्दी में तापमान माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस तापमान में भी अब इस रास्ते में कदम नहीं रुकेंगे।

98 करोड़ की लागत आई: दुनिया के सबसे कठिन वातावरण में बनी इस सुरंग पर करीब 98 करोड़ रुपये की लागत आई है। ये लागत समतल क्षेत्र में एक किमी लंबी पारंपरिक टनल के निर्माण में आम तौर पर लगने वाले 400 से 500 करोड़ रुपये की तुलना में काफी कम है।

गलवान युद्ध स्मारक तक भी पहुंच आसान: सामरिक मजबूती देने के साथ ही ये श्योक टनल स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देगी। सीमा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे। गलवान युद्ध स्मारक जैसे स्थलों तक पहुंच आसान होगी।

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