कानपुर, संवाददाता : कानपुर में ट्रस्ट के द्वारा अरबों की कमाई और टैक्स शून्य का प्रकरण आयकर विभाग की कर चोरी के नए तरीकों की फेहरिश्त में शामिल कर लिया गया है। विभाग ने केस स्टडी के तौर पर यह प्रकरण लिया है। इसके बाद कानपुर समेत देश भर के ट्रस्ट आयकर विभाग के रडार पर आ गए हैं। इनकी संख्या शहर में दो हजार से ज्यादा हैं।
जबकि, आयकर विभाग ने कुछ समय पहले देहरादून के एक ट्रस्ट में छापा मारा था। इसमें ट्रस्ट की जमीनों में बड़े पैमाने पर हेरफेर पकड़ा गया था। विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि शिक्षण संस्थान संचालित करने वाले ट्रस्ट में केवल चार वर्षो में ही 140 करोड़ की कमाई कर डाली। जबकि कर शून्य था।
इसकी जांच में पता चला कि पहले ट्रस्ट ने एक बड़ी जमीन खरीदी। इसे कुछ समय तक अपने पास रखा। इसके बाद अलग-अलग ट्रस्टी व निदेशक के साथ ही अन्य लोगों को अलग-अलग हिस्सों में जमीनें बेची गई। चार सालो के अंतराल में जमीनों को बेचा गया। इसके बाद ट्रस्ट ने इन जमीनों को खरीदना शुरू कर दिया।
आठ से 10 गुना ज्यादा देकर खरीदा गया
जब जमीन ट्रस्ट की ओर से खरीदी गई, तो इसका दाम आठ से 10 गुना ज्यादा देकर खरीदा गया। कुछ जमीन तो एक करोड़ मूल्य से अधिक पर खरीदी गई। जो जमीन खरीदी गई उनका मूल्य बाजार और सर्किल रेट से बहुत अधिक था। आस-पास क्षेत्र में इतने अधिक मूल्य पर जमीनें खरीदी या बिक्री नहीं की जा रही थी।
आयकर कार्यालयों को केस स्टडी के तौर पर भेजा गया
यहीं से मिले सुराग के बाद आयकर विभाग ने अपनी जांच शुरू की, तो पता चला कि चार वर्षो में ट्रस्ट और ट्रस्ट के छह से ज्यादा ट्रस्टियों ने जमीनें खरीदीं और बेची। जो नियमता नहीं किया जा सकता है। इसके बाद विभाग ने छापेमारी की और पूरा प्रकरण खुलता चला गया। ट्रस्ट के जरिए इस तरह जमीनों की खरीद-बिक्री नए तरीके से कर चोरी का प्रकरण बनने के बाद कानपुर समेत देश भर के आयकर कार्यालयों को केस स्टडी के तौर पर भेजा गया है।
खुद लाभ नहीं ले सकते हैं निदेशक या ट्रस्टी
आयकर अधिनियम के तहत ट्रस्ट जिस उद्देश्य के तहत बनाया जाता है उसी के तहत उसे आगे बढ़ाया जाता है और आयकर की छूट का लाभ मिलता है। यह शिक्षा से जुड़ा ट्रस्ट था। ट्रस्ट के ट्रस्टी या निदेशक कोई भी लाभ नहीं ले सकते हैं। जबकि कि कोई सेवा दे रहे हैं तो उसके तहत तय वेतन का लाभ लिया जा सकता है।