नई दिल्ली, एजेंसी : पद्मश्री से सम्मानित, वृक्ष माता कहलाने वाली तुलसी गौड़ा का सोमवार को मृत्यु हो गयी। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सामने तुलसी गौड़ा नंगे पैर और आदिवासी वेशभूषा में पद्मश्री सम्मान हासिल किया था। तुलसी गौड़ा हलक्की समुदाय से आती थीं। वह 86 साल की थीं और वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों से पीड़ित थीं।
गृह गांव हंनाली में उन्होंने अंतिम सांस ली
सोमवार को उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोल तालुक स्थित गृह गांव हंनाली में उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तुलसी गौड़ा के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी। गौरतलब है कि तुलसी गौड़ा ने छोटी उम्र में ही वन विभाग की पौध नर्सरी में काम करना शुरू कर दिया था। लड़कपन में वह अक्सर नर्सरी जाया करती थीं।
तुलसी गौड़ा को पौधे लगाना बहुत ज्यादा पसंद था। इस कार्य को वह बड़े आनंद के साथ करती थीं। अंकोला और उसके आसपास के क्षेत्रो में हजारों पेड़ लगाए गए हैं, जिसका श्रेय तुलसी गौड़ा को जाता है। उनकी ओर से लगाए गए कई पौधे वर्षों बीतने के बाद काफी बड़े हो गए हैं। वह पद्मश्री के अलावा इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार से भी सम्मानित हुई थीं।
तुलसी गौड़ा एक आम आदिवासी महिला थीं, जो कर्नाटक के होनाल्ली गांव में रहती थीं। वह कभी स्कूल नहीं गईं और ना ही उन्होंने किसी तरह का किताबी ज्ञान ही लिया, लेकिन प्रकृति से अगाध प्रेम तथा जुड़ाव की वजह से उन्हें पेड़-पौधों के बारे में अद्भुत ज्ञान था।
उनके पास भले ही कोई शैक्षणिक डिग्री नहीं थी, लेकिन प्रकृति से जुड़ाव के बल पर उन्होंने वन विभाग में नौकरी भी की। चौदह वर्षों की नौकरी के दौरान उन्होंने हजारों पौधे लगाए जो आज वृक्ष बन गए हैं। रिटायरमेंट के बाद भी वे पेड़- पौधों को जीवन देने में जुटी रहीं। अपने जीवनकाल में अब तक उन्होंने एक लाख से भी अधिक पौधे लगाए।