अलीगढ़, आलोक कुमार : हरदुआगंज क्षेत्र में काली नदी के आसपास खोदाई शुरू हुई। यहां एएमयू के पुरातत्व इतिहास विभाग की टीम को मृद्भाण्ड (मिट्टी के बर्तन) बरामद हुए हैं। टीम का मानना है कि उत्खनन से जो पुरावशेष मिले हैं उससे प्रतीत होता है कि यहां कि संस्कृति चार हजार साल से भी अधिक पुरानी है।
कोल के नाम से चर्चित रहे शहर अलीगढ़ की संस्कृति चार हजार साल से ज्यादा पुरानी होने के संकेत मिले हैं। हरदुआगंज क्षेत्र में काली नदी के आसपास के क्षेत्र में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पुरातत्व इतिहास विभाग की टीम शोध कर रही है, जिसमें मिले मृद्भाण्ड (मिट्टी के बर्तन) 2000 ईसा पूर्व के बताए जा रहे हैं। इन पुरावशेषों को कार्बन डेटिंग के लिए भेजा जाएगा, जिससे वास्तविक स्थिति का पता चल सके।
राखीगढ़ी में सिंधु घाटी सभ्यता के साक्ष्य मिलने के बाद वहां पुरातत्व विभाग की टीम कार्य कर रही है
हिसार के राखीगढ़ी में सिंधु घाटी सभ्यता के साक्ष्य मिलने के बाद वहां पुरातत्व विभाग की टीम कार्य कर रही है। वहां उत्खनन की टीम में शामिल रहे और अब एएमयू में पुरातत्व इतिहास विभाग के डॉ. नजरुल बारी, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आफताब आलम, सलीम अहमद, अफरोज जमाल, सुएब और सगीर ने अलीगढ़ के हरदुआगंज क्षेत्र में काली नदी के आसपास खोदाई शुरू की है। पिछले तीन महीने से साइट पर खोदाई कार्य चल रहा है। यहां टीम को मृद्भाण्ड (मिट्टी के बर्तन) बरामद हुए हैं। टीम का मानना है कि उत्खनन से जो पुरावशेष मिले हैं उससे प्रतीत होता है कि यहां कि संस्कृति चार हजार साल से भी अधिक पुरानी है।
एएमयू के पुरातत्व इतिहास विभाग की टीम साइट पर शोध कार्य कर रही है, जिसमें अलीगढ़ की संस्कृति चार हजार साल से ज्यादा पुरानी होने के साक्ष्य मिले हैं। इससे पहले विश्वविद्यालय की टीम ने एटा में साइट पर शोध कार्य किया था, जिसमें 600 ईसा पूर्व संस्कृति के साक्ष्य मिले थे।- प्रो. हसन इमाम, चेयरमैन इतिहास विभाग
आफताब आलम, असिस्टेंट प्रोफेसर, पुरातत्व इतिहास विभाग एएमयू ने बताया कि हरदुआगंज क्षेत्र में काली नदी के आसपास खोदाई की गई, जिसमें मृद्भाण्ड (मिट्टी के बर्तन) मिले हैं, जो गरिक मृद्भाण्ड संस्कृति के प्रतीत हो रहे हैं। यह संस्कृति 2000 ईसा पूर्व की मानी जाती है। अभी कार्य जारी है। कार्बन डेटिंग आदि की जांच के बाद स्थिति स्पष्ट होगी। इस कार्य के लिए यूजीसी ने बजट जारी किया है। इसके अलावा कासगंज में भी साइट पर कार्य शुरू करने के प्रयास जारी हैं।
डॉ. राजकुमार पटेल, अधीक्षण पुरातत्वविद ने बताया कि
डॉ. राजकुमार पटेल, अधीक्षण पुरातत्वविद ने बताया कि उत्खनन करने के लिए पुरातत्व विभाग तथा स्थानीय प्रशासन से अनुमति ली जाती है। विश्वविद्यालयों की टीमें इस पर कार्य करती हैं। संभव है कि एएमयू की टीम इस पर कार्य कर रही हो, लेकिन अभी इस संबंध में जानकारी नहीं दी गई है। हो सकता है कि टीम इसका प्रस्ताव पुरातत्व विभाग को भेजे।
ये है गरिक मृद्भाण्ड संस्कृति
गरिक मृद्भाण्ड संस्कृति, जिसे ओसीपी (Ochre Coloured Pottery Culture) भी कहा जाता है। यह उत्तर भारत में एक कांस्य युग की संस्कृति थी, जो लगभग 2000-1500 ईसा पूर्व में पनपी थी। यह संस्कृति गंगा के मैदान में पूर्वी पंजाब से लेकर पूर्वोत्तर राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली हुई थी। इसकी मुख्य विशेषता चमकीले लाल लेप वाले मृद्भाण्ड थे।