पोलैंड से दिल्ली पहुंचा जायरोकाॅप्टर, दुर्गम इलाकों की करेगा निगरानी

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नई दिल्ली, न्यूज़ डेस्क : पिछले सप्ताह पोलैंड से जायरोकाॅप्टर दिल्ली पहुंच गया। अगले महीने से इसका डेमोंस्ट्रेशन शुरू होगा। इस सुविधा को हासिल करने के लिए आंध्र प्रदेश, पंजाब एवं झारखंड पुलिस के साथ ही सेना, सीआरपीएफ, आइटीबीपी, बीएसएफ, एसएसबी ने रुचि दिखाई है। जायरोकाॅप्टर से दुर्गम इलाकों के ऊपर नजर रखना आसान होगा।

इन जगहों की निगरानी में मिलेगी मदद
उम्मीद की जा रही है कि देश के बड़े उद्यमी व कारोबारी भी ट्रैफिक जाम से बचने के लिए इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि टेक आफ के लिए केवल 100 मीटर लंबी व 15 मीटर चौड़ी एयरस्ट्रिप चाहिए।

इतनी जगह काफी कंपनियों के प्लांटों के परिसर में है। बाढ़ प्रभावित इलाकों वाले जिलों के लिए भी संबंधित राज्य सरकारों द्वारा जायरोकाॅप्टर की सुविधा हासिल करने की उम्मीद है।

कई देशों में है जायरोकाॅप्टर की सुविधा

जानकारी के मुताबिक अमेरिका, जर्मनी एवं फ्रांस सहित दुनिया के कुछ ही देशों में जायरोकाॅप्टर की सुविधा है। इस सुविधा की आवश्यकता अपने देश में अधिक है क्योंकि काफी दुर्गम इलाके हैं। कुछ इलाके हर साल कई महीने बाढ़ प्रभावित रहते हैं। ऐसे इलाकों पर नजर रखने के लिए जायरोकाॅप्टर सबसे बेहतर सुविधा साबित हो सकती है, इसे ध्यान में रखकर जायरोक्स एविएशन प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी ने पोलैंड से जायरोकाॅप्टर लाने की योजना बनाई।

डीजीसीए से सर्टिफिकेट दिया जाएगा

योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए तीन महीने पहले कंपनी ने डायरेक्टर जनरल सिविल एविएशन (डीजीसीए) से जायरोकाॅप्टर लाने की अनुमति हासिल की। लगभग दो महीने में पौलेंड से समुद्र के रास्ते जायरोकाॅप्टर दिल्ली पहुंचा है। अब डीजीसीए से नंबर मिलेगा। नंबर मिलने के बाद डीजीसीए की टीम इसे उड़ाकर देखेगी। देखने के बाद कंपनी को डीजीसीए से सर्टिफिकेट दिया जाएगा।

वर्कशाप में ही रखा जाएगा

इस प्रक्रिया में 10 से 12 दिन लगेंगे। इसके बाद डेमोंस्ट्रेशन शुरू हो जाएगा। फिर डिमांड के अनुसार पौलेंड से जायरोकाॅप्टर मंगाए जाएंगे। वर्कशाप के लिए कंपनी ने जिले के रायसीना गांव के नजदीक 20 एकड़ जमीन खरीदी है। जायरोकाॅप्टर को वर्कशाप में ही रखा जाएगा। यहीं से डेमोंस्ट्रेशन के लिए कहीं भी ले जाया जाएगा।

600 किमी है उड़ान की क्षमता

जायरोकाॅप्टर की कई खासियत है। इसके लिए कारों में इस्तेमाल पेट्रोल ही चाहिए। यही नहीं यह 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 100 से 200 मीटर की ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकेगा। इससे नीचे की स्थिति को बेहतर तरीके से देखा जा सकेगा।

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