नई दिल्ली,रिपब्लिक समाचार,आनलाइन डेस्क : बैसाखी के पर्व को पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन वर्ष 1919 में इस दिन एक ऐसी दर्दनाक घटना घटी थी जो आज भी इतिहास के काले पन्नों में दर्ज है। पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेजों ने निहत्थे हज़ारो मासूमों को गोलियों से भून दिया था।
रोलेट एक्ट का किया विरोध फिर नरसंहार…
इन निहत्थे मासूमों की गलती बस इतनी थी कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश किया था । आज जलियांवाला हत्याकांड के 104 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आज भी अंग्रेजों की इस खौफनाक हरकत को याद कर रूह कांप उठती है। इस दिन आखिर क्यों नरसंहार किया गया था,
जबकि , वर्ष 1919 में जलियांवाला कांड हुआ था और भारत और पंजाब में आजादी की आवाज तेज होती देख अंग्रेजों ने इस दमनकारी हथकंडे को अपनाया था। इस नरसंहार से एक माह पूर्व 8 मार्च को ब्रिटिश हकूमत ने भारत में रोलेट एक्ट पारित किया था। रोलेट एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार भारतीयों की आवाज को दबाने की कोशिश में लगे थे ।
रोलेट एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीयो को कभी भी पकड़कर बिना केस दर्ज़ किए जेल में डाल सकती थी। इस फैसले के खिलाफ 9 अप्रैल को पंजाब के बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और किचलू ने धरना प्रदर्शन किया, जिन्हें प्रशासन ने गिरफ्तार कर कालापानी की सजा सुना दिया था ।
10 अप्रैल को नेताओं की गिरफ्तारी का पंजाब में बड़े स्तर पर विरोध सुरु हो गया, प्रदर्शन को खत्म कराने के लिए ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लागू कर दिया था । इस कानून के जरिए लोगों को इक्ट्ठा होने से रोका गया था।
13 अप्रैल का काला दिन
पंजाब में मार्शल लॉ लग चुका था, लेकिन 13 अप्रैल को हर साल जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन मेला लगता था और हजारों लोग यहां इकट्ठा होते थे। इस दिन भी ऐसा ही हुआ था, हजारों लोग बच्चों के साथ मेला देखने पहुंचे थे। इस बीच, कुछ नेताओं ने रोलेट एक्ट और दूसरे नेताओं की गिरफ्तारी का विरोध जताने के लिए वहां एक सभा का भी आयोजन किया था।
नेता जब गिरफ्तारी के विरोध में भाषण दे रहे थे, तभी अचानक से तंग गलियों से जनरल रेजीनॉल्ड डायर अपने सशस्त्र सैनिकों के साथ बाग में घुस गए और एकमात्र निकासी रास्ते को बंद कर दिया। डायर ने घुसते ही सैनिकों को भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। हजारों लोगों का कत्लेआम शुरू हो गया और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा था।
अंग्रेजी सैनिकों ने चाहे कोई बड़ा हो या छोटे बच्चे किसी को नहीं छोड़ा। लगातार 15 मिनट तक ताबड़तोड़ गोलियां चलायी गईं और 1600 से ज्यााद राउंड फायर किए गए। इस गोलीबारी से बचने के लिए लोगों ने वहां मौजूद एक कुएं में छलांग लगानी शुरू कर दी। कुआं इतना गहरा था कि कोई बच न सका, देखते ही देखते कुएं में भी लाशों का ढेर लग गया।