Air pollution : भारत में हर वर्ष वायु प्रदूषण से हो रही लाखों की मौत

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नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क : पिछले हफ्के लैंसेट की रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया जिसमें साल 2022 में वायु प्रदूषण के कारण भारत में 17 लाख लोगों की मौत हुई, जो साल 2010 के मुकाबले 38 फीसदी ज्यादा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से लगभग 7.5 लाख मौतों के लिए अकेले जीवाश्म ईंधन जिम्मेदार थे, जिनमें से लगभग चार लाख मौतें कोयले से हुईं। वैश्विक स्तर पर, जीवाश्म ईंधन से जुड़े वायु प्रदूषण के कारण 25.2 लाख मौतें हुईं। यह निष्कर्ष ऐसे समय में आया है जब दिल्ली और उत्तर भारत के बड़े हिस्से एक बार फिर घने सर्दियों के धुंध की चपेट में हैं। शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 360 को पार कर गया।

दिल्ली में 2.5 का स्तर WHO के मानकों से 20 गुना ज्यादा

कई इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 20 गुना ज्यादा था, जिसके कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत प्रतिबंध फिर से लागू करने पड़े। हालांकि स्वतंत्र अनुमान वर्षों से भारत को दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में रखते रहे हैं, लेकिन सरकार का आधिकारिक रुख नहीं बदला है।

सरकार के पास नहीं कोई निर्णायक आंकड़े

इस जुलाई में संसद में एक लिखित जवाब में, पर्यावरण मंत्रालय ने दोहराया कि “केवल वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों को स्थापित करने के लिए कोई निर्णायक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।” लेकिन लैंसेट के ताजा वैश्विक आकलन में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। गंदी हवा, बढ़ता तापमान और जलवायु-जनित चरम सीमाएं मिलकर हमारे समय का सबसे बड़ा रोकथाम योग्य जन-स्वास्थ्य संकट पैदा कर रही हैं।

जिन देशों ने कोयले का उपयोग कम किया, उन्हें लाभ हुआ। 2010 और 2022 के बीच, कोयले का उपयोग बंद करने वाले हाई इनकम वाले देशों में पीएम 2.5 से होने वाली मौतों में 5.8% की गिरावट दर्ज की गई। यह इस बात का सबूत है कि नीतियां कारगर हैं और भारत का सबसे तेज स्वास्थ्य लाभ स्वच्छ ऊर्जा और परिवहन में निहित है।

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