BJP ने दिल्ली में आप को हराकर 27 वर्ष बाद की सत्ता में वापसी

DELHI-ELECTION

नई दिल्ली, ब्यूरो : राष्ट्रीय राजधानी में 26 वर्ष बाद भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है। आम आदमी पार्टी (आप) का चौथी बार सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हुआ है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और दूसरे नंबर के नेता मनीष सिसोदिया समेत कई दिग्गज चुनाव हार गए हैं। सीएम आतिशी भी बमुश्किल अपनी सीट बचा पाईं। कुछ बेहतर की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस की फिर दुर्गति हुई है और पार्टी का लगातार तीसरे चुनाव में खाता तक नहीं खुल पाया है। इसके साथ ही अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करिश्मा देखने को मिला। मिल्कीपुर उप चुनाव में सिपहसलारों की मदद से भाजपा को भारी मतों से जिताकर योगी ने कुशल संगठनकर्ता होना साबित किया है।

दिल्ली में क्या हुआ ?

लगातार तीन बार सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी यहां जीत का चौंका लगाने के इरादे से चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन भाजपा ने चौंकाते हुए उसे सत्ता में आने से रोक दिया। दिल्ली की 70 सीटों पर 5 फरवरी को मतदान हुआ था। 14 में से 12 एग्जिट पोल्स में भाजपा की सरकार बनाने का अनुमान जताया गया था, जो सही साबित हुआ। भाजपा ने 48 सीटें जीतीं, जो पिछली बार उसकी जीती हुईं सीटों से 40 ज्यादा है। वहीं, आम आदमी पार्टी को 40 सीटों का नुकसान हुआ और वह 22 पर थम गई। जिस पार्टी के लिए नतीजे नहीं बदले, वो है कांग्रेस। दिल्ली के लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में वह खाता नहीं खोल पाई।

भाजपा की जीत के खास बिंदु क्या रहे ?
भाजपा ने मुखरता के साथ चुनाव लड़ा। शीशमहल, यमुना का पानी, शराब घोटाला और आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं को जेल जैसे मुद्दों पर पार्टी ने आम आदमी पार्टी को जमकर घेरा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आप’ को ‘आपदा’ करार दिया। भाजपा ने मुफ्त की योजनाओं को भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया। यानी भाजपा ने आम आदमी पार्टी को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब परिणाम सामने आए तो भाजपा को 45.56% वोट मिले, जो 2020 के 38.7% वोट से ज्यादा थे। सबसे ज्यादा चर्चा प्रवेश साहिब सिंह वर्मा की रही, जिन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट से आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हरा दिया। उनके खिलाफ कांग्रेस से संदीप दीक्षित भी मैदान में थे।

आम आदमी पार्टी की हार के मुख्य बिंदु क्या रहे ?

शराब घोटाला मामले में खुद केजरीवाल की गिरफ्तारी और जेल से आम आदमी पार्टी का नेतृत्व कमजोर हो गया। साथ ही शीशमहल और यमुना के पानी में जहर जैसे मुद्दों पर पार्टी घिर गई। पार्टी कुछ नेताओं के बगावती तेवरों को भी नहीं रोक सकी। नतीजा यह रहा कि केजरीवाल अपनी सीट नहीं बचा पाए। मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज की जगह जंगपुरा से मैदान में थे, लेकिन वे भी हार गए। सौरभ भारद्वाज, सत्येंद्र जैन, राखी बिड़लान पहली बार चुनाव लड़ रहे अवध ओझा को भी हार का सामना करना पड़ा। बड़े नेताओं में सिर्फ निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी और मंत्री गोपाल राय अपनी सीट बचा सके।

कांग्रेस के प्रदर्शन की क्या खास बात रही ?
इस चुनाव में ऐसा प्रतीत हुआ कि कांग्रेस अपनी जीत के लिए नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी को हरवाने के लिए मैदान में थी। उसने अहम सीटों पर सोच-समझकर उम्मीदवार उतारे। कांग्रेस तो खाता नहीं खोल सकी, लेकिन 10 से ज्यादा सीटों पर उसने आम आदमी पार्टी को जीतने से रोक दिया। अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने यह चुनाव मिलकर लड़ा होता तो भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती थीं। कांग्रेस के लिए भी नई दिल्ली सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न था, जहां से पूर्व सांसद संदीप दीक्षित मैदान में थे। उन्हें 4568 वोट मिले।

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