नई दिल्ली,रिपब्लिक समाचार,एंटरटेनमेंट डेस्क : कुक्कू मोरे का बॉलीवुड फिल्मों में आइटम सॉन्ग दर्शकों की पहली पसंद बन चुका था। देखा जाए तो फिल्म से ज्यादा आइटम सॉन्ग लोगों के दिलो दिमाग में छाए रहते हैं। आज के समय में सुपरहिट एक्ट्रेसेज फिल्मों में आइटम सॉन्ग करती नजर आती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले के सिनेमा में ऐसा नहीं होता था।
कौन थी कुक्कू मोरे ?
उस ज़माने में पर्दे पर आइटम सॉन्ग करने के लिए अलग से डांसर्स का चुनाव् किया जाता था, जिनमें से एक थी कुक्कू मोरे। यह फिल्म इंडस्ट्री में पहली आइटम गर्ल के रूप में सामने आई थी। 1928 में पैदा हुईं कुक्कू अपने समय की बेहतरीन डांसर थीं। कुक्कू मोरे का निधन 52 वर्ष की उम्र में ही हो गया था। कुक्कू मोरे का एंग्लो इंडियन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उन्होंने 40-50 के दशक की फिल्मों में खूब एक छत्र राज किया था।
उस जमाने में ऐसी कोई फिल्म नहीं हुआ करती थी, जिसमें कुक्कू ने डांस ना किया हो। कुक्कू को इंडस्ट्री में ‘रबर गर्ल’ के नाम से लोग जानते थे । वर्ष 1946 में फिल्म‘अरब का सितारा’ से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। अपनी पहली ही फिल्म में कुक्कू ने इतना अच्छा डांस किया कि इसे देखने के बाद उन्हें कई बड़ी फिल्मों में रोल मिलने लगे।
एक गाने में डांस के 6 हज़ार रूपये लेती थी फीस
आपको ये जानकर आस्चर्य होगा कि कुक्कू एक गाने के लिए 6 हजार रुपये उस ज़माने में लिया करती थी। जो आज के समय के करोड़ों रुपये के बराबर माना जा सकता है। कुक्कू सिर्फ अपने डांस के लिए विख्यात थी । वह अपनी शानो शौकत के लिए भी काफी जनि जाती थी।
उस दौर में कुक्कू के पास मुंबई में एक बहुत बड़ा बंगला भी हुआ करता था। उस समय में इनके पास तीन लक्जरी गाड़ियां हुआ करती थी। एक गाड़ी उनके खुद के लिए, एक अपने दोस्तों के लिए और एक उनके कुत्ते के घूमने के लिए हुआ करती थी।
अंतिम दिनों में एक – एक पैसे को तरसी थी कुक्कू
अंतिम दिनों में कुक्कू मोरे को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई थी। उनकी देखभाल करने वाला और उनके पास रहने वाला कोई नहीं था। रिपोर्ट्स के अनुसार , प्रसिद्धि अभिनेत्री तबस्सुम ने अपने शो ‘तबस्सुम टॉकीज’ में कुक्कू मोरे को लेकर बात बताई थी कि- ‘वो हमेशा कहा करती थीं कि मैं अपनी इस हालत की स्वयं जिम्मेदार हूं।
जब मेरे पास बहुत ज्यादा रुपया-पैसा था तो मैंने उसकी कद्र नहीं किया । रुपया पानी की तरह बहाया। नतीजा यह निकला कि मैं एक-एक पाई को तरस गई, लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ मुझे तब हुई जब मैंने खाने की कदर नहीं की। मेरी यही बात ऊपरवाले को बहुत बुरी लगी और मैं एक-एक दाने को मोहताज भी हो गई।