UP : ईसाई मिशनरियों की कई जिलों में गहरी पैठ

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लखनऊ, शिव सिंह : अवध क्षेत्र में अब नेपाल का मधेशी मतांतरण मॉडल अपनाया जा रहा है। ईसाई मिशनरियों को यहां मतांतरण के साथ ही वोटिंग पैटर्न बदलने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। मधेश में सफल इस रणनीति को आगामी चुनाव में यहां आजमाया जा सकता है। मिशनरियों की सक्रियता से सीतापुर, बाराबंकी, बहराइच, श्रावस्ती, सुल्तानपुर और अंबेडकरनगर भी अछूता नहीं है। बलरामपुर, श्रावस्ती व बहराइच का बुरा हाल है।

सुरक्षा एजेंसियों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में मिशनरियों के बदले तरीके पर सचेत किया है। लखनऊ के एक चर्चित पब्लिशिंग हाउस की गतिविधियों को संदिग्ध बताया है। एक और अहम बदलाव दर्शाया है कि यहां कोरियन पास्टरों को मतांतरण की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो बंगलुरु, पंजाब के जालंधर व केरल तक की मजबूत कड़ी बने हुए हैं।

ब्राजील, अमेरिका व साउथ कोरिया से मिले फंड को खर्च किया जा रहा है। निशाने पर मतांतरण के लिए ईसाई मिशनरियों के निशाने पर गरीब, असहाय, दलित, सीमावर्ती थारू जनजाति व रायसिख समाज है। अवध क्षेत्र में सामने आए मतांतरण के मामलों में इन्हीं की सर्वाधिक भागीदारी रही है।

चंगाई का महिमामंडन

सीतापुर के अनुभव पहले हिंदू थे। दो वर्ष पहले उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। उनका कहना है कि बाइबिल पढ़ने के बाद जीवन में व्यापक बदलाव आया। आर्थिक स्थिति सही हुई। स्वास्थ्य भी सही रहने लगा। इस चमत्कार ने उन्हें ईसाई बनाया। ऐसी ही कहानी अयोध्या क्षेत्र के सुरेश की भी है। ये वे ईसाई हैं, जिन्होंने हाल के वर्षों में चमत्कार से चंगाई हासिल करने के दावे के बाद धर्म परिवर्तन किया है।

धर्म बदल रहे, नाम नहीं
सीतापुर में मतांतरण के आरोप में गिरफ्तार पादरी डैनविल बताते हैं कि हम धर्म परिवर्तन की बजाय हृदय परिवर्तन पर जोर देते हैं। हमारे अनुयायी दस्तावेज पर हिंदू ही रहते हैं। मतांतरण के बाद भी वे नाम नहीं बदलते। इससे वह अपने समाज से नहीं कटते, लेकिन धीरे-धीरे ईसा मसीह के भक्त हो जाते हैं। इस तरह उन्हें धर्म परिवर्तन की घोषणा की जरूरत नहीं होती और वे कानूनी कार्रवाई से भी बच जाते हैं।

महिलाओं ने पहनावा ही बदल लिया मतांतरण करने वाले परिवारों के पुरुषों की वेशभूषा तो सामान्य है। लेकिन महिलाओं में व्यापक बदलाव है। उन्होंने सौभाग्य की निशानी चूड़ी, बिंदी के साथ सिंदूर लगाना भी छोड़ दिया है।

चमत्कार का सच
चंगाई सभा में मरीजों और उनके परिजनों को प्रभावित करने के लिए उपचार में हाई पावर एंटीबायोटिक और स्टेरॉयड का प्रयोग किया जा रहा है। इससे वह कुछ समय में ही ठीक हो जा रहे हैं, जिसे चमत्कार बताकर ईसाई धर्म का बखान किया जाता है। बलरामपुर के डाॅक्टर अजय सिंह के अनुसार यह प्रयोग मरीजों को तत्काल तो राहत देता है। लेकिन, इसका व्यापक दुष्परिणाम होता है। यह मोतियाबिंद और ग्लूकोमा, प्रतिरक्षा में कमी, मांसपेशियों की कमजोरी, हड्डियों में बदलाव का कारण भी बनता है।

ये है मिशनरी का मधेश मॉडल

पूरे नेपाल में 1951 तक ईसाई नहीं थे। 1961 में इनकी संख्या 458 हुई। 2011 में बढ़कर 3.76 लाख हो गई। ताजा आंकड़ों के अनुसार ईसाई 6.45 लाख हो गए हैं। नेशनल क्रिश्चियन कम्युनिटी सर्वे के आंकड़े के मुताबिक हिंदू बहुल देश में 7,859 चर्च हैं। सर्वाधिक चर्च और आबादी भारत से सटे मधेश क्षेत्रों में ही है। यहां की जिम्मेदारी कोरियाई पास्टर संभाले हैं। इन्होंने आर्थिक और अध्यात्मिक रूप से गरीब दलित समुदाय व जनजातियों पर काम शुरू किया।

कोरियन वर्ल्ड मिशन एसोसिएशन के अनुसार नेपाल में इस समय 565 कोरियन मिशनरी परिवार हैं। काठमांडू के बाहर चीन प्रभावी दक्षिणी क्षेत्र में इनकी संख्या अधिक है। विदेश मामलों के जानकारी डॉ. उदय बताते हैं कि ईसाई मिशनरियों के विस्तार का ही असर है कि आज तक नेपाल में आधार के लिए परेशान अमेरिकी ने मजबूती से पैर जमाने शुरू कर दिए हैं। इससे चीन चिंतित भी है।

नेपाल में राष्ट्रीय एकता को है खतरा
नेपाल में मतांतरण से सांस्कृतिक पहचान पर संकट गहरा गया है। इससे राष्ट्रीय एकता खतरे में है। मिशनरी गरीब लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर बाद में उनका शोषण कर रही हैं। यह धार्मिक आजादी का नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर शोषण का मामला है। -उपेंद्र यादव, पूर्व उप प्रधानमंत्री नेपाल

ईसाई मिशनरियों की दीर्घकालीन योजना
आंकड़ों में भले ही ईसाइयों की जनसंख्या उतनी नहीं बढ़ी है। लेकिन, ईसाई मिशनरियां दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज को ध्यान में रखकर दीर्घकालिक योजना पर काम कर रही हैं। ऐसे में सचेत रहने की जरूरत है।-विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश

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