आगरा, विवेक मिश्रा : उत्तर प्रदेश में मैनपुरी के गणेशपुर में चार हजार वर्ष पुराने तांबे के हथियार मिले। ये हड़प्पा काल की सभ्यता के साथ उस समय की युद्ध शैली और ढलाई की तकनीक के रहस्यों को भी खोल रहे हैं। गणेशपुर में मिली 77 ताम्रनिधियों में तांबे के साथ कई धातुओं का मिश्रण मिला है, जिनसे तलवार और अलग-अलग आकार के हार्पून बनाए गए हैं। इनमें 69 से लेकर 99 फीसदी तक तांबा मिला है।
दो वर्ष पहले गणेशपुर में ताम्रनिधियों के मिलने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल ने खेत में उत्खनन किया। इसकी 89 पेज की रिपोर्ट इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी में प्रकाशित की गई है। उत्खनन में मिले चार हजार वर्ष पुराने 77 ताम्रनिधियों में से एएसआई ने 46 की एक्सआरएफ जांच कराई।
मेटलर्जी जांच में पता चला कि गणेशपुर में मिली तांबे की तलवारों, हार्पून को अलग अलग धातुएं मिलाकर बनाया गया था। 69 से 99 फीसदी तक ताम्रनिधियों में तांबा मिला है, जबकि अलग-अलग हथियारों में लेड, आयरन, निकिल, सिल्वर, टिन, कैडमियम और कोबाल्ट की मात्रा पाई गई है। इन्हीं तीन हथियारों में तीन अलग अलग तरह के चिन्ह मिले हैं जो बिच्छू, डमरू और कनखजूरा की तरह नजर आते हैं।
77 ताम्रनिधियों में 46 हार्पून हैं
डॉ. राजकुमार पटेल ने सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद नीरज वर्मा और सहायक पुरातत्वविद डॉ. आकांक्षा रॉय चौधरी के साथ तैयार की रिपोर्ट में बताया है कि 77 ताम्रनिधियों में से 46 हार्पून हैं। छह छोटी तलवारें और सात बड़ी तलवारें हैं। चारों ओर धार वाला हार्पून अनूठा है। इन हार्पून का एक जैसा साइज है तो एक जैसा वजन भी है। 813 ग्राम हार्पून का वजन है तो 1578 ग्राम की तलवार भी है।
सबसे भारी तलवार 2.330 किलो की है। आकार के मुताबिक हथियारों का वजन और उनमें मिली अन्य धातुओं की मात्रा घटती-बढ़ती मिली है। चार हजार साल पहले की युद्ध शैली और ढलाई की तकनीक के रहस्य से इन हथियारों ने पर्दा उठाया है। उस दौर में 39 इंच लंबी तलवार के साथ घुड़सवार बल और बड़े जानवर को मारने के लिए उपयोग किए गए चार हुक वाले हार्पून से कई जानकारियां मिल रही हैं।