प्रयागराज, संवाददाता : बाबा मोक्षपुरी कहते हैं, “मैं भी पहले आम नागरिक था। परिवार और पत्नी के साथ मुझे घूमना बहुत अच्छा लगता था। सेना में भी शामिल हुआ, लेकिन एक समय मुझे अहसास हुआ कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है।”
महाकुम्भ 2025 के प्रति भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी श्रद्धालु भी आकर्षित हो रहे हैं। विदेशी श्रद्धालु जहां प्रयागराज में भक्तों का जनसैलाब देखकर हतप्रभ हैं वहीं महाकुम्भ में सरकार की ओर से की गयी व्यवस्थाओं ने भी उनका दिल जीत लिया है। कोई सनातन धर्म की तारीफ कर रहा है तो कोई मोदी योगी सरकार की जमकर सराहना कर रहा है। स्टीव जॉब्स की पत्नी भी महाकुम्भ में स्नान करने आई हैं।
सनातन धर्म से प्रभावित होकर बने संत
प्रयागराज में आपको विभिन्न अखाड़ों में विदेशी मूल के लोग संतों से बात करते हुए और उनका मार्गदर्शन लेते हुए दिख जाएंगे। यही नहीं, कुछ विदेशी तो ऐसे भी हैं जोकि सनातन धर्म से इतना प्रभावित हुए कि वह संत बन गये। इन्हीं में एक नाम है अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्मे बाबा मोक्षपुरी का, जिन्होंने प्रयागराज के पवित्र संगम तट पर अपनी उपस्थिति से सभी लोगो का ध्यान खींचा। कभी अमेरिकी सेना में सैनिक रहे माइकल अब बाबा मोक्षपुरी बन गये हैं। बाबा मोक्षपुरी आध्यात्मिक यात्रा और सनातन धर्म से जुड़ने की कहानी शेयर की।
बाबा मोक्षपुरी कहते हैं, “मैं भी कभी आम नागरिक था। परिवार और पत्नी के साथ घूमना मुझे पसंद था। सेना में भी शामिल हुआ। लेकिन एक समय मैंने महसूस किया कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। तभी मैंने मोक्ष की तलाश में इस अनंत यात्रा की शुरुआत की।” आज वे जूना अखाड़े से जुड़े हैं और अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया हैं।
अमेरिका में जन्मे बाबा मोक्षपुरी ने वर्ष 2000 में प्रथम बार पत्नी और बेटे के साथ भारत की यात्रा किया ।बाबा मोक्षपुरी कहते हैं, “वह यात्रा मेरे जीवन की सबसे यादगार घटना थी। इसी दौरान मैंने ध्यान और योग को जाना और पहली बार सनातन धर्म के बारे में जाना । भारतीय संस्कृति और परंपराओं ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। यह मेरी आध्यात्मिक जागृति का प्रारंभ था, जिसे मैं अब ईश्वर का आह्वान मानता हूं।”
इकलौते बेटे की असमय हो गयी मृत्यु
बाबा मोक्षपुरी के जीवन में दुःख का पहाड़ टूट पड़ा जब उनके इकलौते बेटे का असमय मृत्यु हो गयी । बाबा मोक्षपुरी ने कहा, “इस दुखद घटना ने मुझे तोड़ के रख दिया मुझे ऐसा लगा जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। इसी दौरान मैंने योग और ध्यान को अपनी ताकत बनाया, जिसने मुझे इस दुःख से बाहर निकाला।”
उसके बाद बाबा मोक्षपुरी ने योग, ध्यान और अपने अनुभवों से मिली आध्यात्मिक समझ को समर्पित कर दिया। वे अब दुनिया भर में घूमकर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। 2016 में उज्जैन कुंभ के बाद से उन्होंने हर महा कुंभ में भाग लेने का निर्णय लिया है। उनका मानना है कि इतनी सनातन परंपरा सिर्फ भारत में ही संभव है।
अपनी आध्यात्मिक यात्रा में नीम करोली बाबा के प्रभाव को अपने ऊपर असर बताया। वे कहते हैं, “नीम करोली बाबा के आश्रम में ध्यान और भक्ति की ऊर्जा ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। मुझे वहां ऐसा लगा मानो बाबा स्वयं भगवान हनुमान का रूप हैं। यह अनुभव मेरे जीवन में भक्ति, ध्यान और योग के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है।”