एनबीएआईएम ने सूक्ष्मजीवों की खोज के लिए विकसित की पोर्टेबल डिवाइस

MAU-NEWS

मऊ, संवाददाता : भा०कृ०अनु०प०-राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (एनबीएआईएम), मऊ, ने एक कम लागत वाला पोर्टेबल उपकरण विकसित किया है, जिसे हाल ही में भारतीय पेटेंट प्राप्त हुआ है। यह उपकरण समस्थानिक प्रवर्धन को अंजाम देने में सक्षम है और कृषि एवं चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण रोगजनकों का पता लगाने के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगा। इस उपकरण का विकास वरिष्ठ वैज्ञानिक डा हिलोल चकदार के नेतृत्व में “कवकजनित पौध रोगजनकों का पता लगाने के लिए जीन चिप का विकास” परियोजना के अंतर्गत भा०कृ०अनु०प० द्वारा वित्तपोषित नेटवर्क परियोजना कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सूक्ष्मजीवों के अनुप्रयोग (अमास) के तहत किया गया है।

संस्थान के निदेशक इस उपकरण के बारे में विस्तार से जानकारी दी

संस्थान के निदेशक डॉ. आलोक कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि इस उपकरण में एक प्रोग्राम योग्य तापमान नियंत्रक है, जो प्रतिक्रिया ट्यूबों को निश्चित तापमान पर गर्म करता है। समस्थानिक प्रवर्धन का उपयोग विश्वभर में रोगजनकों का पता लगाने के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। इस उपकरण की विशेषता यह है कि यह सूक्ष्मजीवों, जिनमें वायरस भी शामिल हैं, का पता लगाने के लिए समस्थानिक प्रवर्धन आधारित आणविक निदान परीक्षणों को अंजाम देने में बहुत सहायक होगा।यह उपकरण बैटरी या पोर्टेबल यूपीएस का उपयोग करके खेतों में भी संचालित किया जा सकता है, जिससे इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है।

इस उपकरण का प्रोटोटाइप विकसित करने की अनुमानित लागत तीन सौ रुपये रही, जो इसे अत्यंत सस्ती और सुलभ बनाती है। यह उपकरण विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयोगी होगा जहां संसाधनों की कमी है और उच्च तकनीक वाले उपकरणों का उपयोग करना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि इस उपकरण के विकास में डॉ. हिलोल चकदार के अलावा, डॉ. अनिल कुमार सक्सेना, पूर्व निदेशक, प्रसन्न चौधरी, शालू वर्मा, दीक्षा सिंह, सुदीप्ता दास और डॉ. बीएन सिंह ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

उन्होंने बताया कि हाल ही में इस उपकरण के लिए भारतीय पेटेंट प्राप्त हुआ है, जो न केवल संस्थान के वैज्ञानिकों की उत्कृष्टता और नवाचार की पहचान है। यह उपकरण न केवल प्रयोगशाला में बल्कि फील्ड में भी कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के लिए एक उपयोगी साधन साबित होगा। इससे वे रोगजनकों का जल्दी और सटीक पता लगा सकेंगे, जिससे फसलों की सुरक्षा और उत्पादन में सुधार होगा।

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