पिथौरागढ़, संवाददाता : देश और प्रदेश में विशिष्ट पहचान रखने वाली पिथौरागढ़ की हिलजात्रा को यूनेस्को की धरोहर में सम्मिलत कराने की कोशिश शुरू हुई है। संस्कृति विभाग अल्मोड़ा ने धार्मिक संस्कृति के साथ ही मुखौटा संस्कृति को समेटे सतगढ़,कुमौड़, देवलथल सहित अन्य जगहों पर आयोजित होने वाली हिलजात्रा को संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन यूनेस्को की धरोहर में सम्मिलित का दायित्व संभाला है, इसके अंतर्गत संस्कृति विभाग एक डाक्यूूमेंट्री तैयार करेगा।
अगर यह प्रयास सफल हुए तो कुमौड़ हिलजात्रा की विशिष्ट पहचान भगवान शिव के गण लखिया भूत, सतगढ़ गांव की महाकाली,चीतल , हिरन और बैलों की जोड़ी के साथ ही हिलजात्रा के दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ आयोजित होने वाले चांचरी, झोड़ा,खेल, ठुलखेल को पूरी दुनिया में अनूठी पहचान मिलेगी। वहीं इस लोक संस्कृति और परंपराओं को सहेजने की योजना को बल मिलेगा।
हिलजात्रा के इतिहास का पता लगाएंगे, प्रस्ताव तैयार करेंगे
संस्कृति विभाग की तरफ से जीबी पंत राजकीय संग्रहालय ने इस योजना पर कार्य शुरू कर दिया है। इसके तहत सबसे पहले पिथौरागढ़ के प्रमुख जगहों पर आयोजित होने वाली हिलजात्रा के इतिहास को ढूंढा जाएगा। फिर इसके पीछे धार्मिक, पारंपरिक, सांस्कृतिक, सामाजिक पहलुओं को सम्मिलित करते हुए डाक्यूमेंट्री तैयार की जाएगी और इन अनूठी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को यूनेस्को की धरोहर में सम्मिलित करने का प्रस्ताव तैयार किया जायेगा।
निदेशक डॉ. चंद्र सिंह चौहान ,जीबी पंत राजकीय संग्रहालय,अल्मोड़ा कहते हैं कि प्रस्ताव को तैयार कर पहले संगीत नाट्य अकादमी दिल्ली को भेजा जाएगा, फिर वहां से संस्कृति मंत्रालय जाएगा। संस्कृति मंत्रालय प्रस्ताव का परीक्षण करेगा। फिर संस्कृति मंत्रालय स्तर से यूनेस्को की धरोहर में सम्मिलित करने की आगे की कार्रवाई की जाएगी ।
यहां की हिलजात्रा भी है प्रसिद्ध
डॉ. चंद्र सिंह चौहान, प्रभारी निदेशक, जीबी पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा ने बताया कि पिथौरागढ़ में सिरोली, रसैपाटा, देवलथल,पनखोली सहित अन्य गांवों में हिलजात्रा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। पिथौरागढ़ की हिलजात्रा विशिष्ट है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक और मुखौटा संस्कृति का वाहक है। इसे यूनेस्को की धरोहर में सम्मिलित करने के प्रयास हो रहे हैं। उम्मीद है इसमें सफलता जरूर मिलेगी।