एन.बी.ए.आई.एम : मऊ में प्राकृतिक खेती पर विशाल कार्यक्रम

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मऊ, संवाददाता : भा.कृ.अनु.प.–राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (एन..बी.ए.आई.एम .) में आज कोयंबटूर, तमिलनाडु में आयोजित दक्षिण भारत प्राकृतिक खेती शिखर सम्मेलन का सीधा प्रसारण किया गया। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा संबोधित इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम में ब्यूरो परिसर में 405 से अधिक किसानों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर देश के 9 करोड़ किसानों को पीएम-किसान सम्मान निधि की 21वीं किस्त के रूप में 18,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित की।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती न केवल खेती की लागत घटाती है, बल्कि किसानों की आय बढ़ाने, मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने और पर्यावरण संरक्षण में अत्यंत प्रभावी सिद्ध होती है। दक्षिण भारत में विकसित प्राकृतिक खेती के मॉडलों को उन्होंने पूरे देश के लिए प्रेरणादायक बताया। एन..बी.ए.आई.एम ., मऊ में आयोजित इस कार्यक्रम का नेतृत्व संस्थान के निदेशक डॉ. आलोक कुमार श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में किया गया।

वैज्ञानिक डॉ. हर्षवर्धन सिंह ने किसानों को विस्तार से जानकारी दी

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रधान वैज्ञानिक डॉ. हर्षवर्धन सिंह ने किसानों को संस्थान में संचालित शोध कार्यक्रमों, प्राकृतिक खेती से जुड़े नवाचारों तथा रबी की प्रमुख फसलों के लिए उपलब्ध वैज्ञानिक तकनीकों की विस्तार से जानकारी दी। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वी. मंगेश्वरन ने बायो-फार्मिंग, उसकी प्रक्रियाओं तथा बायो-फर्टिलाइज़र की भूमिका पर महत्वपूर्ण अवधारणाएँ साझा कीं।

इसके अतिरिक्त डॉ. कुमार एम., डॉ. अभिजीत शंकर कश्यप, डॉ. ज्योत्सना तिलगम, डॉ. शोभित थापा और डॉ. ज्योति प्रकाश सिंह ने कार्यक्रम के सफल संचालन में सराहनीय योगदान दिया। कार्यक्रम के दौरान किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज भी वितरित किए गए। किसानों ने प्रधानमंत्री के विचारों और वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन को अत्यंत प्रेरक तथा उपयोगी बताया। कोयंबत्तूर में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्राकृतिक खेती भारत की पारंपरिक और स्वदेशी कृषि पद्धति है।

रसायनों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता और किसानों की आय दोनों प्रभावित होती हैं। किसान “एक एकड़  एक मौसम” मॉडल से शुरुआत करके प्राकृतिक खेती के सकारात्मक परिणाम स्वयं महसूस कर सकते हैं।कोयंबटूर क्षेत्र की पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत जैसी तकनीकें तथा केरल, कर्नाटक की बहु-मंजिला खेती प्राकृतिक खेती के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। युवाओं के लिए प्राकृतिक खेती एक आधुनिक, टिकाऊ और स्केलेबल अवसर बनकर उभर रही है।

वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे खेतों को प्रयोगशाला बनाकर किसानों के साथ मिलकर अनुसंधान को आगे बढ़ाएँ। प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि सरकारी समर्थन, वैज्ञानिक शोध और किसानों की मेहनत मिलकर भारत को टिकाऊ कृषि के एक नए युग की ओर अग्रसर करेंगे। राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो, मऊ में आयोजित यह कार्यक्रम किसानों में प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता, विश्वास और अपनत्व बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण व प्रभावी कदम साबित होगा।

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