आगरा,संवाददाता : दिवाली का पावन पर्व ताजनगरी में धूमधाम से मनाया गया। खुशियों के दीप घर-घर में जगमग हुए। हरित पटाखों को चलाने की अनुमति दी तो ताजनगरी में जमकर आतिशबाजी हुई। बंदनवार से सजे घरों को रंगबिरंगी बिजली की झालरों के साथ रंगोली से सजाया गया। शाम होते ही घरों और प्रतिष्ठानों में शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीगणेश और महालक्ष्मी का पूजन किया गया। महालक्ष्मी के स्वागत के लिए पूरा शहर सज-धजकर तैयार था।
शहर के गली-मोहल्ले, कॉलोनी, बाजार, शोरूम सतरंगी रोशनी से जगमग दिखे। हर कोना फूलों से महका। शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजन हुआ। इसके बाद लोगों ने दीप जलाए। फिर आतिशबाजी का दौर शुरू हुआ। ताजनगरी का आसमान रंग बिरंगी आतिशबाजी से रंगीन दिखाई दिया। देर रात तक पटाखों की गूंज सुनाई देती रही।
ये है मान्यता
त्रेता युग में भगवान राम जब लंकापति रावण का वध कर अयोध्या लौटे तो उनके आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया था और खुशियां मनाई गई थीं। इस कारण हर वर्ष इस तिथि (कार्तिक अवामस्या) को दिवाली मनाई जाती है।
सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद॥
भावार्थ : आनंदकन श्रीरामचंद्र जी अपने महल में चले, आकाश फूलों की वृष्टि से छा गया, नगर के स्त्री-पुरुषों के समूह अटारियों पर चढ़कर उनके दर्शन कर रहे हैं।
गोवर्धन पूजा (14 नवंबर)
गोवर्धन पूजा हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ,गोवर्धन पर्वत,और गोमाता की पूजा करने का विधान है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं के राजा इंद्र के अहंकार को नष्ट कर दिया था। इस दिन मंदिरों के अलावा कॉलोनी आदि में गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान के बड़े सुंदर प्रतिरूप बनाकर पूजा की जाती है।
भाई दूज (15 नवंबर)
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर साल भाई दूज के रूप में मनाते हैं। इस पर्व को सबसे पहले यमुना जी ने अपने भाई यमराज को तिलक लगाया था इससे प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को उपहार स्वरूप यह वचन दिया था कि साल में एक बार मैं आपके पास अवश्य आऊंगा। जो भाई अपनी बहन से इस दिन तिलक करवाएगा, साथ में यमुना नदी में स्नान करेंगे उनको अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।