लखनऊ, डॉ.जितेंद्र बाजपेयी : गोंडा के एक छोटे से गांव में जन्मे नर्सिंह यादव का सपना हमेशा से बड़ा था। एक ऐसा सपना, जिसे देखने की हिम्मत बहुत कम लोग करते हैं, लेकिन सपने देखने और उन्हें पूरा करने के बीच की खाई तब और गहरी हो जाती है, जब संसाधन न के बराबर हों, जेब खाली हो और हालात बार-बार घुटने टेकने को मजबूर कर दें।
नर्सिंह बचपन से ही अलग थे। उन्हें नौकरी करना कभी पसंद नहीं था, क्योंकि वह अपने भाग्य को खुद लिखना चाहते थे। लेकिन हालात ने उन्हें कई बार झकझोरा। कभी पैसों की कमी के कारण पढ़ाई में रुकावट आई, तो कभी खाने तक के लिए संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने कई बार अपने रिश्तों, इच्छाओं और सुख-सुविधाओं को त्यागा, क्योंकि उन्हें अपने सपने पूरे करने थे।
2016 में जब सपना अधूरा रह गया
नर्सिंह ने ठान लिया था कि वह अपनी खुद की लॉन्ड्री ब्रांड शुरू करेंगे। 2016 में सब कुछ तय था, लेकिन आर्थिक तंगी ने उनके कदम रोक दिए। सपने देखने वाले हजारों होते हैं, लेकिन जो उन्हें पूरा करने की जिद रखते हैं, वे ही इतिहास बनाते हैं। नर्सिंह ने हार नहीं मानी। संघर्ष जारी रखा, मुश्किलों से लड़ते रहे, और अंततः 2019 में लखनऊ में अपना पहला ‘Waasle Laundry’ आउटलेट खोल दिया।
सफलता की पहली किरण
पहला आउटलेट खुलते ही मेहनत और ईमानदारी ने रंग दिखाना शुरू कर दिया। तीन महीने के भीतर ही पहला फ्रैंचाइज़ी आउटलेट भी खुल गया। फिर तो जैसे पीछे मुड़कर देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी। एक के बाद एक नए स्टोर खुलते गए, और जल्द ही Waasle Laundry पूरे भारत में अपनी पहचान बनाने लगी। आज, यह ब्रांड 20 से अधिक राज्यों में फैला हुआ है और 60 से अधिक स्टोर्स के साथ भारत का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ लॉन्ड्री ब्रांड बन चुका है।
केवल बिजनेस नहीं, समाज सेवा भी
नर्सिंह का सफर सिर्फ बिजनेस तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने ज़रूरतमंदों के लिए कपड़े दान करने की पहल शुरू की, जिससे अनगिनत लोगों को फायदा मिला। उन्होंने रोजगार के नए अवसर पैदा किए और 250 से अधिक लोगों को सीधे और 200+ लोगों को फ्रैंचाइज़ी के ज़रिए रोजगार दिलाया। इसके साथ ही, स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग प्रोग्राम्स के माध्यम से कई लोगों को आत्मनिर्भर बनाया।
2024 में जश्न और दर्द का संगम
आज Waasle Laundry को पूरे 6 साल हो चुके हैं। यह सिर्फ एक बिजनेस ब्रांड नहीं, बल्कि संघर्ष, मेहनत और समर्पण की कहानी है। लेकिन इस सफलता की खुशी के बीच एक गहरा दुख भी छिपा था—जब नर्सिंह की माँ का निधन हुआ। वह उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा थीं, लेकिन जब उन्होंने दुनिया छोड़ी, तो नर्सिंह अंदर से टूट गए। एक हफ्ते तक वह खुद को संभाल नहीं पाए। लेकिन फिर, उन्होंने खुद को उठाया, आँसू पोंछे, और अपने सपने को माँ के आशीर्वाद के रूप में आगे बढ़ाने का फैसला किया।
अब वह अकेले नहीं हैं…
आज नर्सिंह केवल एक सफल बिजनेसमैन ही नहीं, बल्कि ‘प्रिंस ऑफ Waasle’ के पिता भी हैं। उनका हर कदम उनके बेटे के लिए प्रेरणा है। उनके हर संघर्ष में सीख छिपी है, हर सफलता के पीछे अनगिनत त्याग हैं।
यह कहानी सिर्फ नर्सिंह यादव की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है, जो सपने देखता है, संघर्ष करता है और फिर अपने सपनों को साकार करता है