Worship Act : ओवैसी, इकरा और कांग्रेस ने दाखिल की याचिका

Owaisi-Iqra

नई दिल्ली, एजेंसी : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल अधिनियम- 1991 की वैधता के संबंध में नई याचिका दाखिल करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने संकेत दिया कि वह लंबित अनुसूचित याचिकाओं पर आज सुनवाई नहीं करेगी, क्योंकि आज दो न्यायाधीशों की पीठ बैठेगी। इन याचिकाओं पर पहले तीन न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई कर चुकी है। अदालत ने सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह तक टाल दी।

याचिका दाखिल करने की सीमा होती है

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने एक नई याचिका का जिक्र किया तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम इस पर शायद विचार नहीं कर पाएंगे। सीजेआई ने कहा कि याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है। इतने सारे आईए (अंतरिम आवेदन) दायर किए गए हैं। हम शायद इस पर सुनवाई न कर पाएं।

पिछले साल 12 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने हिंदू पक्षों की 18 याचिकाओं पर कार्यवाही करने पर रोक लगा दी थी। इन याचिकाओं में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद समेत 10 मस्जिदों के सर्वेक्षण की मांग की गई थी। इसके बाद अदालत ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था।
ओवैसी, इकरा हसन और कांग्रेस ने दाखिल की याचिका

12 दिसंबर के बाद असदुद्दीन ओवैसी, सपा सांसद इकरा हसन और कांग्रेस ने भी याचिकाएं दाखिल कीं। इसमें देशभर में पूजा स्थल अधिनियम-1991 को पूरे देश में प्रभावी रूप से लागू करने की मांग की गई थी। इकरा हसन ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की। उनका कहना है कि इससे सांप्रदायिक सद्भाव और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरा है।

हिंदू संगठनों ने भी दाखिल की याचिका

अखिल भारतीय संत समिति ने भी एक याचिका दाखिल की है। वहीं पीठ अभी छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसमें एक याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय की है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में पूजा स्थल अधिनियम 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है। उन्होंनेअधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को अलग करने की मांग की है।

क्या है पूजा स्थल अधिनियम- 1991 ?

पूजा स्थल अधिनियम- 1991 धार्मिक स्थलों के स्वरूप में किसी भी प्रकार के बदलाव से रोकता है। कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को जो धर्म स्थल जिस रूप में था… वह उसी रूप में रहेगा। इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता है। हालांकि राम जन्मभूमि मामले को इससे अलग रखा गया था।

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