लखनऊ,रिपब्लिक समाचार,अमित चावला : जेष्ठ माह के तृतीय बड़े मंगल के अवसर पर रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि संतगण के सान्निध्य में हमें भक्ति लाभ होता है एवं आखिर में ईश्वर प्राप्ति होती है। संतगण यद्यपि साधारण व्यक्ति के जैसे जीवनयापन करते हैं लेकिन उनके कई विशिष्ट लक्षण होते है। किसको सच्चा संत कहा जाएगा इसके उत्तर में श्रीमद्भागवतम् (5:5:2) में कहा गया है-
महान्तस्ते समचित्ता: प्रशान्ता,विमन्यव: सुहृद: साधवो ये
अर्थात जो महापुरुष होते हैं उनमें कम से कम पांच गुणावली दिखाई पड़ना चाहिए। प्रथम, समचित्तता। महर्षि पतंजलि अपने पतंजलि योगसूत्र (1:2) में कहते हैं –
योग: चित्तवृत्ति निरोध:।
स्वामी जी ने कहा कि हमारी मन की चंचलता को स्थिर करने का नाम ही योग है। द्वितीय, संतगण का मन सर्वदा शांत होता है, साफ होता है एवं जो उनके सान्निध्य में जाते हैं उनका मन भी शांत हो जाता है। तृतीय वो विनम्र होते हैं क्रोधहीन होते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता (3:36) में अर्जुन ने श्रीकृष्ण को पूछा था कि हम लोग जो अच्छा है, जो बुरा है, वो जानते हुए भी पापाचरण क्यों करते हैं –
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।।
इसके उत्तर में श्रीभगवान श्रीमद्भगवद्गीता (3:37) में कहते हैं –
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव:।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्।।
अर्थात काम एवं क्रोध एक मुद्रा की दो पीठ होती है। काम प्रतिहत होने से ही क्रोध उत्पन्न होता है जो कि हमें भगवान से दूर कर देते हैं। इसलिए सच्चा संतगण किसी के साथ शत्रु भावना नहीं रखते हैं। काम एवं क्रोध को शत्रु मानकर उनसे सावधान रहना चाहिए।
उन्होंने बताया कि संतगण बिना कोई कारण सबका हित चिंतन करते हैं। सबकी पुकार सुनने के लिए सदा प्रस्तुत रहते हैं।