मुंबई, ब्यूरो : समानांतर सिनेमा के पिता के तौर पर विख्यात श्याम बेनेगल का सोमवार को मुंबई वॉकहार्ट अस्पताल में किडनी से जुड़ी बीमारी के चलते निधन हो गया। बेनेगल के परिवार में उनकी पत्नी नीरा बेनेगल और बेटी पिया बेनेगल हैं। गत 14 दिसंबर को ही उन्होंने अपना 90वां जन्मदिन मनाया था। उस पार्टी में शबाना आजमी, दिव्या दत्ता, नसीरुद्दीन शाह,रजित कपूर समेत कई कलाकारों ने शिरकत किया था।
बेनेगल का अंतिम संस्कार मंगलवार को शिवाजी पार्क में दोपहर 3 बजे किया जाएगा। बेनेगल की बेटी पिया बेनेगल ने कहा कि उनका निधन शाम 6.38 बजे वॉकहार्ट अस्पताल में हुआ।
वह कई वर्षों से किडनी संबंधी बीमारी से पीड़ित थे। फिल्म इंडस्ट्री में श्याम बाबू के तौर पर विख्यात बेनेगल ने पिछली सदी के सातवें दशक से लेकर आठवें दशक के दौरान अंकुर, निशांत और मंथन जैसी फिल्मों के साथ भारतीय समानांतर सिनेमा आंदोलन की शुरुआत की थी।
बेनेगल की कहानी भारतीय सिनेमा पर अमिट छाप छोड़ गई : नरेन्द्र मोदी
श्याम बेनेगल के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, पीएम मोदी सहित कई दिग्गज हस्तियों ने दुख प्रकट किए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने एक्स हैंडल पर लिखा, “श्याम बेनेगल के निधन से भारतीय सिनेमा और टेलीविजन के एक गौरवशाली अध्याय का अंत हो गया है। एक संस्थान के रूप में उन्होंने कई अभिनेताओं और कलाकारों को तैयार किया था।”
वहीं, पीएम मोदी ने लिखा,”श्याम बेनेगल जी के निधन से बहुत दु:ख हुआ, जिनकी कहानी कहने की कला का भारतीय सिनेमा पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके काम को विभिन्न क्षेत्रों के लोग हमेशा सराहते रहेंगे।”
बेनेगल की फिल्मों में दिखती थी समाज की सच्चाई
जातिवाद, व्यभिचार और गरीबी जैसे मुद्दों से निपटती अपनी पहली फिल्म अंकुर (1974) से ही बेनेगल की फिल्मों ने सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई, जो समाज में हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज उठाती है। निशांत (1975) और सुसमन (1987) जैसी ऐतिहासिक फिल्मों ने समाज के कई दमनकारी पदानुक्रमों को गहराई से समझने के उनके प्रयासों को जारी रखा।
पिछली सदी के नौवें दशक के दौरान बेनेगल ने पटकथा लेखक और पत्रकार खालिद मोहम्मद के साथ मिलकर मुस्लिम महिलाओं के संघर्षपूर्ण जीवन पर केंद्रित त्रयी फिल्में मम्मो (1994), सरदारी बेगम (1996), और जुबैदा (2001) बनाईं।
इस वर्ष की शुरुआत में उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में शुमार मंथन (1976) को फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा डिजिटल रूप से बहाल किया गया और 77वें कान फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया। नसीरुद्दीन शाह और दिवंगत स्मिता पाटिल अभिनीत यह फिल्म भारत की पहली पूरी तरह से क्राउड फंडेड फिल्म थी, जिसका भुगतान उन्हीं 5,00,000 किसानों ने किया था जो कहानी के लिए प्रेरणा थे और भारत की ‘श्वेत क्रांति’ एवं डा. वर्गीज कुरियन के दुग्ध सहकारी आंदोलन का हिस्सा थे।
‘भारत एक खोज’ जैसे धारावाहिक के डायरेक्टर हैं श्याम बेनेगल
बेनेगल ने अपने करीब पांच दशक लंबे करियर में ‘भारत एक खोज’ और ‘संविधान’ धारावाहिक के साथ विविध मुद्दों पर फिल्में बनाईं। उनकी फिल्मों में भूमिका, जुनून, मंडी, सूरज का सातवां घोड़ा, मम्मो और सरदारी बेगम शामिल हैं, जिन्हें हिंदी सिनेमा में क्लासिक्स के रूप में गिना जाता है। बतौर निर्देशक उनकी आखिरी फिल्म पिछले साल प्रदर्शित बायोपिक ‘मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन’ थी।
यह फिल्म बांग्लादेश के संस्थापक और बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान पर आधारित थी। बेनेगल को भारत सरकार द्वारा 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार, नंदी पुरस्कार और भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 2006 से 2012 तक वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे।