उदयपुर, स्वाति मीणा : मेले तो आपने कई जगह देखे होंगे, लेकिन उदयपुर में हरियाली अमावस्या का मेला विश्व के अनूठे मेलों में शुमार है। इस मेले की सबसे खास बात यह है कि दो दिवसीय मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं यानी सहेलियों के लिए आरक्षित है। सवा सौ सालों से चली आ रही यह परम्परा आज भी कायम है। यह मेला इस वर्ष 17 और 18 जुलाई को आयोजित होगा।
विशेष होता है उदयपुर का मेला
हरियाली अमावस्या पर राजस्थान में कई जगह मेले आयोजित होते हैं लेकिन उदयपुर के मेले की बात कुछ अलग ही है। इस मेले की शुरूआत तात्कालिक महाराणा फतहसिंह के कार्यकाल के दौरान वर्ष 1898 में हुआ था। महाराणा फतहसिंह ने दुनिया में पहली बार महिलाओं को अकेले मेले का आनंद उठाने का अधिकार दिया था।
दो दिवसीय मेले की शुरूआत
महाराणा फतह सिंह के नाम पर ही देवाली तालाब का नाम फतहसागर पड़ा, जिसकी प्रसिद्ध झीलों में गिनती होती है। पहली बार जब महाराणा फतहसिंह मेवाड़ की महारानी और अपनी पत्नी चावड़ी रानी के साथ देवाली तालाब पर घूमने गई तब महारानी ने उनसे महिलाओं के लिए मेला आयोजित किए जाने की इच्छा जताई, जिसे उन्होंने मान लिया।
उन्होंने महारानी की अपील के बाद पूरे नगर में मुनादी कराई और दो दिवसीय मेले की शुरूआत कर उसका दूसरा दिन केवल महिलाओं यानी सखियों के लिए किए जाने की घोषणा की।
सहेलियों के लिए महाराणा संग्राम सिंह ने बनवाई थी बाड़ी
मेवाड़ में महिलाओं को विशेष दर्जा मिलता रहा है। अठारवीं सदी में तत्कालीन महाराणा संग्राम सिंह ने शाही महिलाओं के लिए सहेलियों की बाड़ी का निर्माण कराया था। इस बाड़ी में उनकी रानी विवाह के दौरान आई 48 सखियों के के साथ हर दिन प्राकृतिक माहौल में घूमने आती थीं। महाराणा संग्राम सिंह ने सहेलियों की बाड़ी का डिजायन स्वयं तैयार किया था।
रानी को बारिश की आवाज बहुत पसंद थी और इसीलिए इसमें ऐसे फव्वारे बनाए गए जिनके चलते रहने से बारिश का अहसास होता रहता था। इस बाड़ी के प्रमुख आकर्षण यहां पर लगे फव्वारे हैं, जिन्हें इंग्लैण्ड से मंगवाया गया था और वह गुरुत्वाकर्षण पद्धति से चलते थे। बीचों बीच लगी छतरी से चादर की तरह पानी गिरता है, ऐसा फव्वारा दुनिया में कहीं नहीं पाया जाता।